Tuesday, September 20, 2011

मोहब्बत के चिराग ...

वो खामोशी में गुस्सा जता रहे थे
बात दिल की दिल में छिपा रहे थे !

हमने जब पूंछा सबब उनसे
तो रूठे-रूठे ही मुस्कुरा रहे थे !

हम इतने नादां थे, फिर भी
उनके दर को खट-खटा रहे थे !

रोज दे देकर तसल्ली दिल को
हम खुद को आजमा रहे थे !

कैसे टूटेगी अब ये उलझन मेरी
यही सोच सोच के घवरा रहे थे !

आस के मोहब्बती चिरागों को
बार बार बुझने से बचा रहे थे !!

5 comments:

Unknown said...

वाह बेहतरीन

प्रवीण पाण्डेय said...

काश वे जलते रहें।

Patali-The-Village said...

बेहतरीन.....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
कृपया पधारें
चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क