Sunday, September 18, 2011

... राज धर्म खुद ही तप है, बन बैठा उपहास है !

काश ! घड़ी-दो-घड़ी को मैं 'बापू' हो जाता
झूठों को अनशन का सबक सिखा जाता !
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गर हमें बदनाम करना था, इशारा कर दिया होता
ख़ामो-खां तुम भी हमारे संग, यूँ बदनाम न होते !
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कोई प्यार करे या न करे, उसकी मर्जी
पर कम से कम खामोश तो न रहे !
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न कर सितम, न बन सितमगर
तेरा आशिक हूँ कातिल नहीं हूँ !
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अब इस कदर चाहो न हमको, आँखें नम हो जायेंगी
सच ! भीड़ में, तन्हाई में, यादें बहुत याद आयेंगी !!
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बड़ा जालिम है यार मेरा, एहसान जता रहा है
उफ़ ! मेरे जख्मों को काँटों से सहला रहा है !!
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सच ! मांग लो जां, कुरबां कर देंगे
मगर इतने भी सितम ठीक नहीं !!
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न जाने कौन कहता है, तेल खाड़ी देशों से निकलता है
उफ़ ! यहाँ तो सरकारें तेल निकालने पर आमादा हैं !!
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बड़ा जालिम था असर्फियाँ गिन गिन के मुस्कुरा रहा था
बेटी के जिस्म का सौदा कर भी अकड़ के चल रहा था !!
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भूख नहीं है जिसको, देखो वो बैठा उपवास है
राज धर्म खुद ही तप है, बन बैठा उपहास है !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, राजधर्म स्वयं तपने का नाम है।