Sunday, August 28, 2011

काश ! ये हुनर हमको भी आया होता !!

सच ! जब अनशन बना हो देश में, जनक्रान्ति की आग
फिर, किसी कोने में बैठ के, गुमसुम देखा नहीं करते !!
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ये माना हर किसी की होतीं, अपनी-अपनी विचारधारा हैं
मगर जब बात हो मुल्क की, तब पीछे हटा नहीं करते !!
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कोई समझता क्यों नहीं, या कोई समझना नहीं चाहता
मुल्क के हालात और युवादिल, हो रहे आग के शोले हैं !
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हाल-ए-वतन बद से बदतर होते जान पड़ रहे हैं 'उदय'
उफ़ ! नरमी के सांथ-सांथ, कहीं गर्मी न उमड़ जाए !!
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सच ! सलाखों से भी ज्यादा मजबूत कायदे-क़ानून हुए हैं
इस पार के लोग इस पार, उस पार के लोग उस पार हुए हैं !
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नहीं, आँखे बंद करने की कसम नहीं खाई है
कुछ कसम तो खाई है, पर आँखें बंद कर खाई है !
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करते भी क्या आकर तेरे छज्जे पे परिंदे
कैद होने से फना होना मुनासिब समझा !
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हम चुप-चाप यूं ही ठगे जाते रहे
शायद ! किसी दिन तो तुम्हें हम रास आएंगे !!
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सुनते हैं छपना-छपाना भी एक हुनर है 'उदय'
काश ! ये हुनर हमको भी आया होता !!

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

छपने छपाने से अधिक छिपने छिपाने में बीतता है जीवन।

Unknown said...

ਤੁੱਸੀ ਤੋ ਵਿਵੇਕ ਦਾ ਸਮਰਪਣ ਕਰਨੇ ਕੇ ਲਿਏ ਕਹ ਰਹੇ ਹੋ ......ਔਰ ਫਾਸਿਬਾਦ ਮੁਲੁਕ ਕੇ ਨਾਮ ਪਰ ਪੈਦਾ ਨਹੀ ਹੋੰਡਾ.......

Smart Indian said...

@सुनते हैं छपना-छपाना भी एक हुनर है 'उदय'
काश ! ये हुनर हमको भी आया होता !!
सुन्दर रचना, nothing succeeds like success!

सागर said...

bhaut hi sundar abhivaykti...