कविता : पदयात्रा !
हे प्रभु
ये कौनसी, कैसी पदयात्रा है
जिसमें, चलते चलते
पदयात्री
मार्ग से, यात्रा से
कहीं और चला गया
सफ़र बीच में छोड़कर
यात्रा, और लक्ष्य छोड़कर !
हे प्रभु
क्या ये नया प्रयोग है
यात्रा, पदयात्रा का
या फिर, एक नई खोज है
या एक नई मिसाल है
जिसे हमें, सहयात्रियों को
समझना
और अमल में लाना है !
हे प्रभु
क्या अब, पदयात्री
सीधे ही, या सीधेतौर पर ही
किसी अन्य मार्ग से
या यूं कहें, वायु मार्ग से
सीधे, डायरेक्टली
लक्ष्यस्थल पर उपस्थित हो जायेंगे
क्या ये यात्रा, पदयात्रा
स्वमेव, पूर्ण मानी जायेगी !!
1 comment:
आपका इशारा जिस पद यात्रा की और है ...अगर ये वही यात्रा है तो हम भी ये ही सोच रहे है कि...इसका अंजाम आगे चल कर क्या होगा
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