Friday, July 8, 2011

... ये आलम है, खुदी को नीलाम किये बैठे हैं !!

सच ! जिस दिन चाहेंगे, हम खुद को संवार लेंगे
आज मौक़ा हंसी है, किसी दूजे को संवारा जाए !
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क़त्ल कर के भी सुकूं मिला होगा शायद
तब ही, चील-कऊओं की बाठ जोहे बैठे हैं !
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बादशाहों की बादशाहतों का ये आलम है 'उदय'
फकीरों की दुआओं से भी कहीं छोटी सल्तनतें हैं !
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खूब होड़ मची है, सीखने-सिखाने की
काश ! हम भी नौसिखिया होते !!
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कितनी बेरहमी से तोड़ा है, आशिकी ने दिल हमारा
खामोश बैठे हैं, कहीं कुछ दिखता नहीं अब नजारा !
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ठीक ही रहा निकलते निकलते निकल लिए
वरना बेवजह ही, लेने के देने पड़ गए होते !
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मिल जा कहीं, भीड़ में ही सही
समय से परे, कहीं दूर ले चलूँ !
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तनहा तनहा ही सही, हम गुनगुना लेते हैं
देख तेरे चेहरे पे हंसी, हम मुस्कुरा लेते हैं !
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किसी को जमीं, तो किसी को आसमां मिल गया
सच ! सफ़र मेरा है जो कहीं दूर तलक जाता है !
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चलो सरकारें चल तो रहीं हैं, दलाल भरोसे ही सही
कहीं तो ये आलम है, खुदी को नीलाम किये बैठे हैं !!

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