Saturday, June 11, 2011

... था तो मैं पत्थर ही पर, तूने मुझे 'रब' कर किया !!

गर यूं ही चलते रहे हम, तो फिर इतना समझ लो
सच ! गर मर भी गए, तब भी हम, ज़िंदा रहेंगे !!
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एक दिल ही है, जो हमसे सम्भाला नहीं जाता
गर 'खुदा' दो-चार दे देता, जाने क्या हुआ होता !
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गर तुम चाहते ही हो, तो लो सुनलो मेरी कहानी
शहर में, है नहीं कोई, जो सुन ले मेरी ज़ुबानी !!
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नजर तुम्हारी, मुझे, छू छू कर चली गई
कहो, क्या इरादे हैं, जो बयां नहीं करते !
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उफ़ ! अब शिकवा करें, तो किससे करें हम
नहीं दिखता कोई, जिसे अपना कहें हम !!
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उफ़ ! क्या सुकूं, क्या ताजगी पाई है हमने
कंठ हुआ है तर-बतर, हौंठों से छू-कर तुझे !
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मरेंगे मरेंगे, सब भ्रष्टाचारी, सड़ सड़ के मरेंगे
सच ! कुछ आज, तो कुछ कल, जरुर मरेंगे !
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तंग हालात में, वक्त ने, तुझको, मुझसे, जुदा तो कर दिया था 'उदय'
पर 'रब' जाने, वक्त की मंसा है क्या, जो आज फिर हम मिल गए !!
...
वक्त ने करवट बदल कर, मुझको पारस कर दिया
था तो मैं पत्थर ही पर, तूने मुझे 'रब' कर किया !!

3 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पत्थर को रब करने से आग भी पैदा हो जाती है. शेर बढ़िय है.

निर्मला कपिला said...

वक्त ने करवट बदल कर, मुझको पारस कर दिया
था तो मैं पत्थर ही पर, तूने मुझे 'रब' कर किया !! उमदा रचना। शुभकामनायें।

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब।