Saturday, June 11, 2011

सच ! अब मौत दे दो !!

मुझे पता है कि मैं
लोकतंत्र हूँ ! अमर हूँ
खुद--खुद, मर नहीं सकता
अमरत्व का वरदान है मुझे
पर, अब मैं और जीना
सच ! बिल्कुल जीना नहीं चाहता
क्या करूंगा, जी कर
मेरे ही अंग अब
सड़ने-गलने लगे हैं,
खुद--खुद
उन पर कीड़े, जन्मने लगे हैं
दिल, और धड़कनें मेरी
कंप-कंपाने लगी हैं
अब सोच-विचार भी मेरे
कल्लाने-झल्लाने लगे हैं
रूह का क्या ! जाने
कब से थर्रा रही है
भ्रष्ट, भ्रष्टतम, भ्रष्टाचार से
हुआ, बहुत शर्मसार हुआ
बस, मुझे तुम
सच ! अब मौत दे दो !!

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

लोकतन्त्र की परीक्षा।

Dr.J.P.Tiwari said...

एक दुखद सच जिसे मर्म्स्पेशी, सार्थक और संवेदनशील अभिव्यक्ति दी है आपने. सभी सम्वेदंशीलोम के मन की बात है लेकिन मार्ग क्या है? जो भी जागने का प्रयास करता है उसे चुप करा दिया जाता है. लोकतंत्र नहीं भोगवादी लोकतंत्र है. आपकी लेखनी को सलाम.

Dr.J.P.Tiwari said...

एक दुखद सच जिसे मर्म्स्पेशी, सार्थक और संवेदनशील अभिव्यक्ति दी है आपने. सभी सम्वेदंशीलोम के मन की बात है लेकिन मार्ग क्या है? जो भी जागने का प्रयास करता है उसे चुप करा दिया जाता है. लोकतंत्र नहीं भोगवादी लोकतंत्र है. आपकी लेखनी को सलाम.

Dr.J.P.Tiwari said...

जनता के दिल की आवाज हूँ मैं
अब तक था दबा अब नहीं दबूंगा.
जनता के ऊपर नित भ्रष्टाचार
बहुत सहा अब नहीं सहूंगा.

हो रहे उजागर नित प्रतिदिन
भ्रष्ट आचरण और भ्रष्टाचार.
सुबह उठा और देखा पेपर
सुर्ख़ियों में छाया भ्रष्टाचार.

आचार विचार सब गौड़ हुए
हुआ प्रधान अब भ्रष्टाचार.
अब होती है इसपर चर्चा इतनी
लोकप्रिय न हो जाय भ्रष्टाचार.

रोज रोज जब जाप करोगे
परस्पर विरोधी बातकरोगे.
नियम कानून ताक पे रख
कहीं छा न जाए भ्रष्टाचार.

नयी पीढ़ी दीवानी शार्टकट की
उसे भा न जाए यह भ्रष्टाचार.
है कोढ़ समाज का भ्रष्टाचार.
मिटाना हमे है यह भ्रष्टाचार.

करो बात यदि भ्रष्टाचार की.
एक स्वर से फिर यही बात करो.
लो मिट्टी हाथ और करो संकल्प
मिटायेंगे इस देश से भ्रष्टाचार.

कडुवासच said...

@ Dr.J.P.Tiwari jee
... behatreen rachanaa ... aabhaar !!

Randhir Singh Suman said...

nice

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


खास चिट्ठे .. आपके लिए ...

Anju (Anu) Chaudhary said...

ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र आखिरी सांसे ले रह हैं

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