Sunday, June 19, 2011

... क्या खूब सरपरस्ती है, यहाँ मौक़ापरस्ती की !

सच ! टूटा हुआ, बिखरा हुआ, था पडा मैं कल कहीं
'रब' जाने क्या हुआ, जो आज मैं साबुत खडा हूँ !!
...
बाबाजी तो अभी खुद ही सन्नाटे में हैं
जाने कब, सन्नाटे से तूफां बनेंगे !
...
एक में गुरु, तो दूजे में चेले के गुण लबालब हैं
क्या खूब सरपरस्ती है, यहाँ मौक़ापरस्ती की !
...
पहले खुद समझ लें, जनता तो समझ ही लेगी
गर नीयत अच्छी नहीं, तो फिर समझाना कैसा !
...
मैं करता भी, तो भला करता क्या उसका
किसी की जान ले लेना, कहाँ था मेरे बूते !
...
पढ़ाई खर्च के नाम पर जिस्मफरोशी, क्या खूब बहाना है
दर-असल, फितूर और मौज में, ढूंढा एक नया तराना है !
...
कल तक खामोशियों में सिसकियाँ छिपा रहा था आदमी
उफ़ ! आज कोलाहल में फफक-फफक के रो रहा है आदमी !
...
मीडिया की कहानी, खुद उनकी ज़ुबानी बयां है
उफ़ ! जहां हड्डी दिखे, वहीं पे दुम नजर आये !

2 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया लिखा है सर!

----------------------------------
कल 20/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल

प्रवीण पाण्डेय said...

हताशा बिखरी है।