सच ! टूटा हुआ, बिखरा हुआ, था पडा मैं कल कहीं
'रब' जाने क्या हुआ, जो आज मैं साबुत खडा हूँ !!
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बाबाजी तो अभी खुद ही सन्नाटे में हैं
न जाने कब, सन्नाटे से तूफां बनेंगे !
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एक में गुरु, तो दूजे में चेले के गुण लबालब हैं
क्या खूब सरपरस्ती है, यहाँ मौक़ापरस्ती की !
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पहले खुद समझ लें, जनता तो समझ ही लेगी
गर नीयत अच्छी नहीं, तो फिर समझाना कैसा !
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मैं करता भी, तो भला करता क्या उसका
किसी की जान ले लेना, कहाँ था मेरे बूते !
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पढ़ाई खर्च के नाम पर जिस्मफरोशी, क्या खूब बहाना है
दर-असल, फितूर और मौज में, ढूंढा एक नया तराना है !
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कल तक खामोशियों में सिसकियाँ छिपा रहा था आदमी
उफ़ ! आज कोलाहल में फफक-फफक के रो रहा है आदमी !
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मीडिया की कहानी, खुद उनकी ज़ुबानी बयां है
उफ़ ! जहां हड्डी दिखे, वहीं पे दुम नजर आये !
2 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
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कल 20/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
हताशा बिखरी है।
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