Thursday, June 16, 2011

... कैसे मुमकिन हो, वहां लोकपाल बैठे !!

वो घूंघट डाल कर करते रहे, बातें मोहब्बत की
अब कैसे मान लें हम, चाँद से बातें हुई होंगी !!
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चलो खुशनसीबी है, किसी पर किसी की नजर तो है
वरना कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नजर ही नहीं रखते !
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कोई जुदा होकर खुदा है, तो कोई खुदा होकर जुदा है
सच ! बता तू ही मुझे अब, कि तू जुदा है या खुदा है !
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तो मैं कमजोर था, और ही तुम बलवान थे
जीत थी हार थी, बस थोड़ी-बहुत तकरार थी !
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ठीक ही है कोई जनसंघी तो कोई बजरंगी है
नहीं तो सब के सब, भ्रष्ट - घपलेबाज होते !
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लुट रही लुटिया है देखो, फिर भी दमदार हैं
पकड़ लंगोटी हाँथ में, दौड़े-पड़े सरकार हैं !
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तो वो मुझसे डरा, और ही मैं उससे डरा
पर वो भी खामोश था, और मैं भी खामोश था !
...
भ्रष्टतम भ्रष्ट लोगों की हुकूमत हो जहां
कैसे मुमकिन हो, वहां लोकपाल बैठे !
...
हमने इतना ही है जाना, तुम महकते हो सदा
इश्क हो, या इबादत, सब में बसते तुम सदा !

6 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

समय के हिसाब से बढ़िया ग़ज़ल...

shama said...

कोई जुदा होकर खुदा है, तो कोई खुदा होकर जुदा है
सच ! बता तू ही मुझे अब, कि तू जुदा है या खुदा है !
Wah! Kya gazab likha hai!

M VERMA said...

सुन्दर रचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इस बार बहुत शानदार..

प्रवीण पाण्डेय said...

जहाँ भी बैठे, देश का भला हो।

Deepak Saini said...

वाह वाह
सारे शेर अछ्छे है