बाबा जी
कूदो ... और कूदो
बेवजह ... राजनीति में
दांव ... अच्छा मारा था
जोर का मारा था
सरकार ... काँप उठी थी
सिहर सी गई थी
पर ... जैसे ही ... मौक़ा मिला
उसने ... एक ऐसा पेंच डाला
आपका दांव ... सरकार के पेंच से
अपने आप ... दांव-पेंच ... हो गया
वाह ... वाह-वाह ... क्या खूब
दांव-पेंच ... नजर आया
पहले सरकार ... छट-पटाती सी लगी
फिर ... आप ... औंधे मुंह
चित्त से ... नजर आए
सही है ... सही कहते हैं ... सही सुनते हैं
भईय्या ... ये राजनीति है
राजनैतिक ... दांव-पेंच हैं !
फिर देश की निरीह जनता हो
या चतुर राजनैतिक ... रणनीतिकार हों
या फिर ... बाबा जी ... ही क्यों न हों
उठा-पटक ... पटका-पटकी ... दांव-पेंच
तो राजनैतिक ... हथकंडे हैं
और रणनीतिकार ... हथकंडेबाज हैं
देखो ... संभलो ... संभल कर चलो
जय हो ... बाबा जी ... जय हो !!
3 comments:
बिल्कुल ठीक उदय जी..
dam hai
बाबा जी ... जय हो ...jaikar to ho hi rahi hai. kyaa yahi uplabdhi kam hai?
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