सच ! क्या हुआ जो जेल में, बैठे हुए हैं हम
ये तंत्र है अपना, और सल्तनत हमारी है !
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क्या हुआ जलते रहे हम, दीप बन के रात में
सर्द भी बढ़ने लगी थी, काली अंधेरी रात में !
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शब्दों को प्यार में इस तरह सटा-सटा के रख दिया जाए
जब भी देखे कोई, दूर से, पास से, उसे कविता ही लगे !!
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बेकरारी में वक्त गुजरता रहा, हम चलते रहे
कहीं कुछ छूट गया, गुजरते वक्त के सांथ !!
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कोई है जो तुम्हें, आज भी चाहता है
उफ़ ! दूर से ही सही, पर चाहता तो है !
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क्या करोगे जानकर तुम, मेरी दास्ताँ-ए-मोहब्बत
तुम किसी हंसी चेहरे पे, तो हम वतन पे फ़िदा हैं !
4 comments:
वह चाहे, यही पर्याप्त है।
हकीकत छुपी है..
क्या करोगे जानकर तुम, मेरी दास्ताँ-ए-मोहब्बत
तुम किसी हंसी चेहरे पे, तो हम वतन पे फ़िदा हैं !
सुभान अल्लाह बहुत खुब जी
हम वतन पे फ़िदा है..खूब
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