Friday, April 29, 2011

... दूर से ही सही, पर चाहता तो है !

सच ! क्या हुआ जो जेल में, बैठे हुए हैं हम
ये तंत्र है अपना, और सल्तनत हमारी है !
...
क्या हुआ जलते रहे हम, दीप बन के रात में
सर्द भी बढ़ने लगी थी, काली अंधेरी रात में !
...
शब्दों को प्यार में इस तरह सटा-सटा के रख दिया जाए
जब भी देखे कोई, दूर से, पास से, उसे कविता ही लगे !!
...
बेकरारी में वक्त गुजरता रहा, हम चलते रहे
कहीं कुछ छूट गया, गुजरते वक्त के सांथ !!
...
कोई है जो तुम्हें, आज भी चाहता है
उफ़ ! दूर से ही सही, पर चाहता तो है !
...
क्या करोगे जानकर तुम, मेरी दास्ताँ-ए-मोहब्बत
तुम किसी हंसी चेहरे पे, तो हम वतन पे फ़िदा हैं !

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वह चाहे, यही पर्याप्त है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हकीकत छुपी है..

राज भाटिय़ा said...

क्या करोगे जानकर तुम, मेरी दास्ताँ-ए-मोहब्बत
तुम किसी हंसी चेहरे पे, तो हम वतन पे फ़िदा हैं !
सुभान अल्लाह बहुत खुब जी

Arun sathi said...

हम वतन पे फ़िदा है..खूब