Friday, April 29, 2011

... दिल में न सही, हौंठों पे तो होते !

तुमसे मिले, मिलते रहे, हम मुसाफिर की तरह
लम्हे-लम्हे में, सदियों-सा सुकून मिला है हमें !
...
क्या बात है, मारा है पटक के आंकड़ों ने
कोई गौरवांवित है, तो कोई शर्मसार है !
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उफ़ ! सुनते हैं, लिखते वही हैं, जो छपते रहे हैं
भला अब अपना क्या लेखन, जो छपते नहीं हैं !
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काश ! हम भी होते, उसके जैसे
दिल में सही, हौंठों पे तो होते !
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कहो, कब तलक, तुम्हें हम यूं ही देखते रहें
कभी फुर्सत निकाल के, मिल लिया करो !
...
कभी इधर-कभी उधर, हम उड़ते रहे फिजाओं में
तुम्हारे सांथ में, घरौंदों सा सुकूं, मिलता है हमें !