जो जा छिपे बैठे हैं, डर से कंदराओं में
वक्त के तूफां, उन्हें भी बाहर लायेंगे !
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सवालों पे सवाल उठाने की देश में नई रीत चली है
सच्ची आस्थाएं भी, सवालों के कटघरे में खडी हैं !
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चप्पे-चप्पे पे माफिया राज चल रहा है 'उदय'
क्यों न, फिर किसी अन्ना को जगाया जाए !
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ये कैसा तंत्र है, जिसे सब लोकतंत्र कहते हैं
लोग हैं बंद जेलों में, और चुनाव जीते पड़े हैं !
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उफ़ ! इसे तुम धोखा, धोखाधड़ी मत समझो यारो
ये खुल्लम-खुल्ला लूट है, इन्हें दण्डित करो यारो !
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क्यों न टांग दें खूंटी पे, ऐसी रश्मों को
जो फर्क करती हैं, आदमी-औरत में !
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तराश के पत्थर, जमीं में गाड़ दो यारो
बन मील का पत्थर, वही राहें दिखाएंगे !!
1 comment:
ये कैसा तंत्र है, जिसे सब लोकतंत्र कहते हैं
लोग हैं बंद जेलों में, और चुनाव जीते पड़े हैं !
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bahut baddhiya..
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