Tuesday, April 26, 2011

... गुस्सा भी बढ गया, चप्पल भी चल गई !

जलता रहा, जल गया, अब ख़ाक हो गया हूँ
आज भी वजूद मेरा, राख बन हवाओं में है !
...
सारे वतन में, तड़फ और ग़मों का आलम है 'उदय'
हुक्मरानों को, घर की नहीं, पड़ोस की चिंता हुई है !
...
भूल गए, वादे तोड़ गए, चले गए, छोड़ कर हमें
उफ़ ! लगे ऐसे, जैसे वो आज भी चाहते हैं हमें !
...
सब, दोपहर, शाम, रात, उफ़ ! जब देखूं देखता रहूँ
अब तू ही बता मुझको, कब तू अच्छी नहीं लगती !
...
जीते रहे, बेसहारा रहे, अब मर गए, मौज रहेगी 'उदय'
साहित्य सागर में, जिन्दों का नहीं, मुर्दों का बसेरा है !
...
जो लातों के भूत हैं, कैसे बातों में मान लें
गुस्सा भी बढ गया, चप्पल भी चल गई !!