Thursday, April 21, 2011

तुम किसी हंसी चेहरे पे, और हम वतन पे कुर्बां हैं !!

उफ़ ! जो ढो रहे हैं खुद को, मुर्दा सा भीड़ में
उनकी बिसात क्या है, जिन्दों से लड़ सकें !
...
सुनता हूँ, मैं बहुत बुरा आदमी हूँ
गर चाहो, तुम आजमा लो मुझे !
...
'खुदा' जाने तेरी निगाह से क्या झलके है, प्रेम या गुस्सा
उफ़ ! अब तुम ही सुझाओ, क्या समझें, और क्या नहीं !
...
चल, घट, बढ़, रुक, मत रुक, चलता चल, आगे
तेरा, मेरा, हम सब का, सच ! यही तो जीवन है !!
...
गुनाह कर लिया हमनें, जो तुम्हें हम चाहते रहे
उफ़ ! खता तो की, अब तारीखें भी क़ुबूल हैं हमें !
...
क्या करोगे जान कर, तुम मेरी दिल्लगी की दास्तां
तुम किसी हंसी चेहरे पे, और हम वतन पे कुर्बां हैं !!

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह।

AK SHUKLA said...

खूबसूरत कविता ..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अंतिम शेर सबसे अच्छा लगा..

राज भाटिय़ा said...

क्या करोगे जान कर, तुम मेरी दिल्लगी की दास्तां
तुम किसी हंसी चेहरे पे, और हम वतन पे कुर्बां हैं !!
पुरी गजल बहुत अच्छी लगी, लेकिन यह शेर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद