Wednesday, April 20, 2011

सच ! मैं गुनहगार तो हूँ पर कसूरवार नहीं हूँ !!

सच ! ये माना तेरी दीद के अपने मिजाज हैं
खुशनसीबी हमारी जो हम शिकायतों में हैं !
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किसी की बार बार अल्पविराम लगाने की आदत से तंग थे
उफ़ ! करते भी क्या, आज हमने ही पूर्णविराम लगा दिया !
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जेल की सलाखें, अब आरामगाह बन गईं हैं
सच ! तब ही तो लोग बेख़ौफ़ जुर्म किये हैं !
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रोजमर्रा की झंझटों से आम आदमी बैकफुट पर है
उफ़ ! ख़ास आदमी फ्रंटफुट के शौक़ीन हुए हैं !
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सच ! लोकतंत्र की चाल बेढंगी हुई है 'उदय'
तंत्र मजबूत, लोक असहाय नजर आते हैं !
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हे 'खुदा' ! तेरे सामने है मेरे गुनाहों की किताब
सच ! मैं गुनहगार तो हूँ पर कसूरवार नहीं हूँ !!

1 comment:

arvind said...

हे 'खुदा' ! तेरे सामने है मेरे गुनाहों की किताब
सच ! मैं गुनहगार तो हूँ पर कसूरवार नहीं हूँ !! ...bahut khoob.