Wednesday, March 23, 2011

पर कोई सुलह की कोशिश पर, हामी तो भरे !!

चंद रुपयों के लिए, भ्रूण हत्याओं के गुनाह
उफ़ ! इनके गुनाह पीढियां तबाह कर दें !
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भ्रष्टाचार मुद्दे पर नारको टेस्ट का नाम सुन कर
उफ़ ! कहीं कुछ नेताओं की जान निकल जाए !
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गर हुई होती मोहब्बत, खुशी-गम हम समझते कैसे
सच ! मोहब्बत तो मोहब्बत है, इल्जाम लगाओ यारो !
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तुमने लड़खड़ा कर मोहब्बत में, नशे के इल्जाम सहे हैं
उफ़ ! हम तो मोहब्बती नशे से, शहर में बदनाम हुए हैं !
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गर बचना है तल्ख़ इल्जामों से 'उदय'
सच ! सारे शहर को बदनाम किया जाए !
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इंसा चाहे तो कर ले नुक्ता-चीनी जिन्दगी की बुद्धि-विवेक से
मगर अफसोस, समय, हालात, व्यवहार, करने नहीं देते !
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अब क्या कहें, जब भी देखा तुम्हें, देखते रहे
सच ! गर देखें तो जीना दुश्वार लगे है !
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ये कैसा ठंडाई का सुरूर है, जो उतारे उतरे
ठंडाई संग, रंग और प्यार की चुस्की होगी !
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ये माना समस्यायों का हल जंग नहीं है 'उदय'
पर कोई सुलह की कोशिश पर, हामी तो भरे !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जंग नहीं कोई चाहे है,
सहना पर अन्याय नहीं।

Deepak Saini said...

बहुत गजब की अभिब्यक्ति| धन्यवाद|