कोई न भी कहे, तब भी हम तो तुम्हें चाहेंगे
सच ! तुम्हें देखे बिना, हमसे रहा नहीं जाता !
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हमारी चाहतों का, अब कोई इम्तिहां न ले
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक जी चाहेगा !
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अखबार ! जरुरत न सही, आदत सी पड़ गई है
कुछ अच्छा, कुछ बुरा, इसमें संसार दिखता है !
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ये ठीक ही रहा मुन्नी की बदनामी रंग लाई
बदनाम भी हो गई, और नाम भी हो गया ! !
3 comments:
कोई न भी कहे, तब भी हम तो तुम्हें चाहेंगे
सच ! तुम्हें देखे बिना, हमसे रहा नहीं जाता !
.............वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
अति सुन्दर ।
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