बुजदिलों ने भीड़ बन, सारा शहर जला दिया
देख लुटती आबरू, किसी से कुछ हुआ नहीं !
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जब भी देखूं मैं तुझे, जज्बात बहक जाते हैं
अब तुम्हीं कुछ कहो, रोकूँ तो कैसे खुद को !
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हर जमाने में मोहब्बत का, अपना अलग मकां होता है
ये और बात है, लोग मोहब्बत का तमाशा बना देते हैं !
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क्यूं छिप छिप कर, हमें यूं सता रहे हो
मेरी आवाज सुनकर, बाहर चले आओ !
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क्यूं न हम सामने रहते रहते ही, गुमशुदा हो जाएं
कोई पहचान न सके, और हम तुम्हें चाहते भी रहें !
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वो यूँ दौड़कर आया, हादसे की तरह
टूटकर बिखरा, आंसुओं की तरह !!
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हम तो मिट्टी के थे, मिट्टी हो गए
तुम थे सोने के, फिर कैसे मिट्टी हो गए !
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आज भीड़ में वो मुझको मिला था
सच ! न जाने क्यूं तन्हा ही लगा था!
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ख़त्म क्यूं होती नहीं, साकी तेरी गुस्ताखियां
क्यूं खफा,खफा सी हैं, आज तेरी चालाकियां !
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चमचागिरी की मिशालें, वतन में खूब तरक्की पे हैं 'उदय'
ओहदे, तमगे, रियासतें, सिपहसलारी, सब उनके हुए हैं !!
6 comments:
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बहुत खूब ! शुभकामनायें !!
मै समझ नहीं पाया ये क्या हैं। अगर गज़ल की बन्दिशों मे लिखा जाये तो बहुत खूबसूरत चीज़ें पढ़ने को मिलेंगी
ताकत भी उन्हीं की है।
चमचागिरी की मिशालें,वतन में खूब तरक्की पे हैं 'उदय'
ओहदे, तमगे,रियासतें,सिपहसलारी,सब उनके हुए हैं !!
बहुत भावमयी उम्दा रचना
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