बुजदिली की मशालें, भीड़ में मिल जायेंगी
फूंक से जल जायेंगी, प्रतिरोध से घवारायेंगी !
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ताजगी, रौनक, खुशबू, खुबसूरती, दीवानगी
जब भी देखा है तुझे, तू सब सी लगे है मुझे !
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जागते रहो - नहीं आऊँगी, कह कर चली गई
नहीं आऊँगी सुना नहीं, सारी रात जागते रहे !
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सुबह से शाम तक, इर्द-गिर्द भटकता फिरा
बेचारा आदमी ! किसी इश्क में लाचार था !
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सच ! तुम्हारी चुप ने, न जाने क्या कर दिया
देखते देखते आम आदमी से ख़ास हो गया !
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तुम से आते न बना, और न ही आये तुम
हम बैठे रहे, चौखट पे आँखें बिछाए हुए !
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उफ़ ! बला सी खुबसूरती समेटी है तुम में
तुम ही कह दो अब, क्यूं न चाहें हम तुम्हे !
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सच ही कहा है 'उदय' ने, सपने तो सपने होते हैं
देखो तो जी भर के देखो, उनकी हदें नहीं होतीं !
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जब भी देखा, गुनाह मिरे, आते हैं नजर
सच ! गर झूठ बोलें, तो वे आईने न हों !
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आँखें, जुल्फें, जिस्म, अदाएं, और महकती खुशबू
उफ़ ! न जाने क्या सोचकर 'रब' ने बनाया है तुझे !!
2 comments:
आकर्ष सोच पाया, निष्कर्ष नहीं।
मुझे पहले शेर पर पूरी गजल की उम्मीद है..
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