Saturday, March 12, 2011

न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!

सांसद निधि बढ़ा कर सरकार ने, अच्छा किया
सच ! किसी किसी का तो भला जरुर होगा !
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'खुदा' जाने, क्यों खामोश रहती है माशूक मेरी
सच ! मैंने तो आज तक उसे, कभी डांटा नहीं !
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बहुत हुई हाय-तौबा, अभी भी वक्त है, गुनाहों से तौबा कर लो यारो
कहीं ऐसा हो, इमारतें तो खडी रहें, पर खेलने को बच्चे ही न रहें !
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वक्त का भी क्या कहना, आज बुरा तो कल अच्छा
ये जिन्दगी है मियां, वक्त बदलते देर नहीं लगती !
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अंखियाँ, द्वार, पिया, सेज, मिलन, इंतज़ार
उफ़ ! दुल्हन बैठी रही, दुल्हा मियां गायब रहे !
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सच ! क्या रक्खा है, शब्दों और अल्फाजों में
आंखें मूंद के देखो, शायद वहां मेरा वसेरा हो !
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हम हो गए थे बुत, देख उसको रु--रु
अब क्या कहें, चाहना, गुनाह हो गया !
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कब कहा, कब चुप रहे, और कब हमने खामोश कहा
इधर से, उधर से, दिलों की धड़कनें, बातें करती रहीं !
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आज तू हमें लहरों सी, खिल-खिल बहती लगे है
सच ! जी तो चाहे, आज तेरे संग-संग बह लूं मैं !
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सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!

5 comments:

amit kumar srivastava said...

तुझमें रब दिखता है,यारा मै क्या करूँ.....बहुत उम्दा...

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब, पैनापन है भावों का आपकी रचनाओं में।

राज भाटिय़ा said...

सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!
हमेसा की तरह लाजबाव जी धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

भला ही भला होगा..

Udan Tashtari said...

बेहतरीन...