Monday, March 7, 2011

उफ़ ! उसकी क्या इच्छा, और क्या इच्छा मृत्यु !!

सच ! चलो हम मान लेते हैं, कोई दूध का धुला नहीं होगा
पर भ्रष्ट तंत्र और भ्रष्टाचार मिटाना भी तो धर्म-कर्म होगा !
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तिनके तिनके समेट के घरौंदे बनाए थे हमने
उफ़ ! एक झौंका हवा का, उड़ा कर चला गया !
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अब कोई मुझसे मेरी जिदों की हदें न पूछे
वो तो चलती हैं सदा, मेरे इरादों के संग !!

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बनिया करे भी तो क्या करे, वह तो शुद्ध परचूनी है
सच ! वह तो वही माल बेचेगा जो खरीदा जाएगा !
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उफ़ ! हमारे गाँव, ऐसे वृद्ध आश्रम बन चले हैं 'उदय'
जहां वृद्ध जीवन तो हैं पर कोई जीवन रक्षक नहीं हैं !
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बाबा रामदेव ने तो मात्र भ्रष्टाचार मिटाने की अलख जगाई है
सच ! सारे के सारे भ्रष्टाचारियों के दिए टिम - टिमाने लगे हैं !
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पत्थरों और हम में, फर्क उतना ही रहा
उफ़ ! वो टूटते रहे और हम तड़फते रहे !
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सदियों के ये फासले, आओ मिटा दें हम
बस थोड़ा तुम कह दो, थोड़ा हम कह दें !
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वहां कुछ मिलना-मिलाना नहीं रहा होगा
तब ही तो, समय-बे-समय लौट आये !!
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जो शख्स बीमार है, बोल-सुन-समझ नहीं सकता
उफ़ ! उसकी क्या इच्छा, और क्या इच्छा मृत्यु !!

2 comments:

Smart Indian said...

जो शख्स बीमार है, बोल-सुन-समझ नहीं सकता
उफ़ ! उसकी क्या इच्छा, और क्या इच्छा मृत्यु !!

बडी गहन बात कह दी आपने. काश यह आवाज़ बहरे कानों तक पहुँच पाये!

प्रवीण पाण्डेय said...

दोनो के कुछ कुछ कह देने से न जाने कितने फासले मिट जाते हैं।