मेरे जज्बातों का समुन्दर बहुत गहरा है
सच ! जो भी डूबा है, बस डूबा ही है !
...
आयोजकों की चाटुकारिता का कोई पैमाना नहीं होता
सच ! वो तो जिसको चाहेंगे, उसको आजमाएंगे !
...
एसएम्एस आया - आज बहुत अकेली हूँ
उफ़ ! क्या दिल्लगी है, फोन स्वीच आफ निकला !
...
सांठ-गांठ ! दुल्हा भला घोड़े पे बैठ क्यूं न इतराए
जब मीडिया ही द्वार-चार में गाजे-बाजे संग खडी हो !
...
शमा, रात, जिन्दगी, धीरे धीरे जलती रही
मगर अफसोस, कोई झुलसने नहीं आया !
...
आयेगी, आयेगी, आयेगी, पता नहीं कब
गुजारिश की, आने की, शुक्रिया की घड़ी !
...
कुछ ख़ास, क्या ख़ास, बस सोच रहे हैं
कुछ ख़ास नहीं दिखता ये अंदाज तेरा !
...
कोई क्या करे, सारे पत्ते हरे हरे हैं
झर रहे हैं, हरे हरे, सारे पत्ते हरे हरे !
...
रोज थक कर,चूर होकर बिस्तर पे गिर पड़ता हूँ
उफ़ ! मंजिलें ख़्वाब में, चैन से सोने नहीं देतीं !
...
मैं पत्थर हूँ, चाहकर भी खुद 'खुदा' हो नहीं सकता
तू ही जाने, कब मौजों के थपेड़ों से तराशा जाऊं !!
4 comments:
बहुत बढ़िया,उदय जी
रोज थक कर,चूर होकर बिस्तर पे गिर पड़ता हूँ
उफ़ ! मंजिलें ख़्वाब में, चैन से सोने नहीं देतीं !
जीवन की सच्चाई है यह,बहुत खूब
एक से बढ़ कर एक शेर
बहुत ही खूब, मौजों की तराशों।
गलती माफ़ करे उदय जी अर्ज है...
मैं तन्हा था लड़कपन में ....
अब भी कट रही है जिन्दगी तनहइयो में ...
वो मुफलिसी का दौर था अब भी कुछ ऐसा ही है
..................
Post a Comment