Monday, February 21, 2011

उफ़ ! हुक्मरानों को शर्म भी नहीं आती !!

सुनते हैं, ये मुल्क के लिए फिक्रमंद हुए हैं
अफसोस, इन्हें खुद का शहर नहीं दिखता !
...
भ्रष्टाचार की कश्ती में, अब छेद बढ़ने लगे हैं
सच ! इन्हें डूबने से, कोई बचा नहीं सकता !
...
किसको
कहें, किसकी सुनें, कोई समझाए हमें
हमें तो हर सक्श पागल, उफ़ ! दीवाना लगे है !
...
ख़्वाब टूट जाते हैं अक्सर, ऐसा सुना था हमने
इसलिए ख़्वाबों को कभी, सहेजा नहीं हमने !!
...
हसरतें, धड़कनें, सांसें, दीदार, महबूब
उफ़ ! ज़रा ठहरो, अब एतबार करो !
...
अब भला 'जी' की, क्या गुस्ताखी रही
बड़ी संजीदगी से, हटाने कह दिया !!
...
अब क्या कहें आज की सब हम तुम्हें
उफ़ ! ऐसा लगे नींद से जागे नहीं हो !
...
तेरी सौबत की चाह में, हम सरेआम हो गए
अब तुम चुप रहो, बहुत बदनाम हो गए !
...
ये एक नया दौर है 'उदय', वतन परस्ती जुबां पे है
उफ़ ! कर रहे सौदा वतन का, बन रहे सिरमौर हैं !
...
दरिन्दगी की हदें, रोज टूट रही हैं 'उदय'
उफ़ ! हुक्मरानों को शर्म भी नहीं आती !!

2 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

sach ko batati hiu rachna

ब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार

संजय कुमार चौरसिया said...

sach ko batati hiu rachna

ब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार