Tuesday, February 22, 2011

सच ! अब चाहें भी तो, कैसे हम संभालें खुद को !!

सादगी, ताजगी, संजीदगी, खुबसूरती, क्या नहीं है
सच ! कोई बताये हमें, क्यूं चाहें हम तुम्हें !
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सारी दुपहरी चलते रहे, तपते रहे
क्या करते, जाना भी जरुरी था !
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हर सक्श का अपना, एक अलग मिजाज है
पर अपने मिजाज सा, कोई दूजा नहीं दिखता !
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खुशनुमा मौसम हुआ, संभालें खुद को
कहीं ऐसा हो, तेज बारिस हो, भीग जाएं हम !
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अब, कहाँ, किसको, किसकी, किसलिए, चिंता हुई
उफ़ ! कौन जाने, कब, कहाँ, किसके, काम जाए !
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कितना झूमेंगे पी पी के यारा
ज़रा सांस भी तो ले लेने दो !
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आज किसी का पैगाम गया
सच ! मेरी सब सुहानी हो गई !
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जंगल से चले, चलते चले, चाँद पर पहुंचे
मगर अफसोस, सब बड़े मतलबी निकले !
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ज्यादा नहीं, तनिक दर्द को कुरेदना सीखो
सुना है, जख्म भी देते हैं सुकूं, कुरेदने पर !
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कोई जाने कब, आँखों से दिल में उतर आया है
सच ! अब चाहें भी तो, कैसे हम संभालें खुद को !!

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज्यादा नहीं, तनिक दर्द को कुरेदना सीखो
सुना है, जख्म भी देते हैं सुकूं, कुरेदने पर !
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सटीक बात ..खूबसूरती से लिखे हैं सारे शेर ...

रवीन्द्र प्रभात said...

हर शेर नपा-तुला और अभिव्यक्ति भावात्मक,बधाईयाँ !