चाहते तो हम सभी हैं, बदल जाएं हालात देश के
पर ऐसा सुनते है, हुक्मरानों की चाहत अलग है !
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धूप-छाँव, उतार-चढ़ाव, सुख-दुख
कुछ ऐसा ही मिला-जुला है जीवन !
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कोई है जो सपनों में भी, आ आ कर सता रहा है
पर खता क्या है हमारी, पूछने पर शर्मा रहा है !
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लोग कितना भी कर लें जतन
न जाने क्यूं, वो हमें ही चाहते हैं !
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नहीं ऐसा नहीं है, विचार तो होता है
अफसोस, कोई सहमत नहीं होता !
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यह रात कुछ यूं गुजरे, लम्हें ठहरे रहें
तुम सामने रहो, और हम देखते रहें !
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चलो देखें, कौन हंसता है, बेबसी पे
बेबस हुए तो हुए, पर लाचार नहीं हैं !
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चलो चलते रहें, कुछ तलक और आगे
सच ! हमें तुमसे, बहुत करनी हैं बातें !
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अब क्या कहें, रोज तो रोज है, खुशबू के क्या कहने
रोज मिले न मिले, खुशबू सही, पर रोज मिलती रहे !
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मकबूल साहब आदत से मजबूर हैं, छाया फिर से सुरूर है
उफ़ ! माधुरी, अनुष्का, और अब विद्या के नशे में चूर हैं !!
5 comments:
पुरानी आदत है, एक दिन में नहीं छूटेगी।
"उदय बाबू" आदतेँ इतनी जल्दी कहाँ छूटती हैँ ,तभी तो एक निबंध "on habits" मे लेखक "A.G.Gardiner" कहते हैँ कि आदतेँ भाग्य निर्माता हैँ और सभी मनुष्योँ मेँ आदतेँ उनके रोजमर्रा के जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैँ । आदते डालना जीवन को नियमित करता है किन्तु अनेक बार अनियमित आदतेँ हमारी ऊर्जा को नष्ट करती हैँ तथा हम खो जाते हैँ । आदतोँ को बैसाखी बनाना तथा उन पर निर्भर रहना ठीक नही है ।
नहीं ऐसा नहीं है, विचार तो होता है
अफसोस, कोई सहमत नहीं होता !
वाह, बेहतरीन शेरों का सुंदर गुलदस्ता सजाया है आपने।
बधाई।
बहुत सुंदर हमेशा की तरह, धन्यवाद
समसामयिक ग़ज़ल में आपका जवाब नहीं
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