काश, इतनी रौशनी हमें भी दे देता 'भगवान'
कुछ पल को सही, सारे अंधेरे दूर कर देते !
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चलो आज उसकी सजाएं, आजमा लें हम
सच ! ये हमारे हौसले हैं, जो कम नहीं होंगे !
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आज जब मैंने तुम्हें देखा, लाल साड़ी में, अद्भुत
सच ! ऐसा लगा तुम मेरे आँगन का पलाश हो !
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तुम खामोश थीं, फिर भी ऐसा लगा
सच ! जैसे तुमने मुझसे कुछ कहा है !
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आज बहुत, जमीर बेचने को उतारू हैं
दौलत व शौहरत के नशे में चूर हुए हैं !
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कोई चापलूस कहता है, बुरा नहीं लगता
सच ! अब तो आदत सी हो गई है !
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रात-दिन पैसा कमाने, छिपाने की धुन ने
सच ! बहुतों को दिल का मरीज बना दिया !
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पैसा कमाने के चक्कर में
उफ़ ! बन गए घनचक्कर !
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ये स्टाइल है अपुन का, कहो - है न ख़ास
तब ही तो लोग, देखकर मायूस रहते हैं !
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क्या ज़माना है, हमारे आने की खबर सुनकर
उफ़ ! भाई लोग, नौ दो ग्यारह हो गए !!
4 comments:
उदय भाई आपकी यह ब्लाँग पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी ,आभार ।
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और ब्लाँगर नन्दलाल भारती जी का साक्षात्कार पढने के लिए यहाँ क्लिक करेँ>>
बहुत सुंदर ओर सत्य से भरपूर आप की यह गजल धन्यवाद
ज़मानाइच खराब है।
अभागे होंगे वे जो कड़वा सच सुनने में डरेंगे।
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