न जाने कब तक तुम, इन आँखों से सच बोलोगे
वो घड़ी कब आयेगी, तुम जब होंठों से हाँ बोलोगे !
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जख्म जो तूने दिए थे, उन से लड़कर जी पडा हूँ
अब क़यामत से भी लड़ने का जुनूं आ गया है !
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नाराज होकर, जहां में किसी को कुछ न मिला
सच ! आज भी तन्हा हैं, हम तुमसे बिछड़ कर !
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गरीबी, जिन्दगी, शोषण, और दम भरती सरकारें
उफ़ ! जी रहे हैं लोग, ये भी तो जिन्दगी का सच है !
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सांस चल रही है, बस मरते नहीं हैं
उफ़ ! अब क्या कहें, ये जीवन है !
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न जाने कब तक तुम, बातों में झूठी कहानी, रचते रहोगे
उफ़ ! आँखों में, कहीं कुछ, सच छिपा रक्खा है तुमने !
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हम तो तुमको देख कर ही मर मिटे थे
सच ! गर चाहो तो आजमा लो खुद को !
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सच ! बहुत हुआ, अब और शरमाना ठीक नहीं
वैसे भी, घड़ी-दो-घड़ी का साथ ही तो मिलता है !
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बाबाजी के इरादों को कतई, कम न आंके कोई
समय आ गया खुद के गिरेबां में झांके हर कोई !
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सांप को दूध पिलाना, आस्तीन में सांप पालना
उफ़ ! कई नेता-अफसर, सांप-सपेरे बन रहे हैं !!
3 comments:
अच्छी प्रस्तुति !
truly brilliant..
बहुत धारदार।
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