Tuesday, February 22, 2011

उफ़ ! अब वो दौर नहीं, लोग नेकी करें और दरिया में डाल दें !!

चलो, किसी को आजमाया जाए
ठहरे लम्हों को, चलाया जाए !
...
कोई कुछ भी कहे, कुछ बात तो है
सच ! नजरें ठहर-सी जाती हैं !
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सहेज लो आँखों में, बाहर मत निकलने दो
सच ! फिर देखें, ख़्वाब कैसे पूरे नहीं होते !
...
सच ! अब हमें तुम पर एतबार रहा
कभी कुछ, कभी कुछ, क्या फलसफा है !
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सच ! खुद पे एतबार, क्या खूब है
ज़रा ठहरो, हमें भी आजमाने दो !
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ये माना, काम कठिन है ईमानदारी से जीना
सच ! क्यों दो घड़ी आजमा के देखा जाए !
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उफ़ ! जालिम लोग ईमानदारी से जीने नहीं देते
हे 'भगवन' दया कर, कहीं ये बस्ती उजड़ जाए !
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पैर फिसला, गिर पड़े, उठ गए
जुबां फिसली, गिरे, पड़े हुए हैं !
...
जमाने को तो किसी दिन देख लेंगे हम
सच ! चलो पहले खुद को संभालें हम !
...
एहसान की भाषाएं, परिभाषाएं, आशाएं, बदल गईं हैं 'उदय'
उफ़ ! अब वो दौर नहीं, लोग नेकी करें और दरिया में डाल दें !!

2 comments:

kshama said...

सहेज लो आँखों में, बाहर मत निकलने दो
सच ! फिर देखें, ख़्वाब कैसे पूरे नहीं होते !
Bahut sundar!

राज भाटिय़ा said...

एहसान की भाषाएं, परिभाषाएं, आशाएं, बदल गईं हैं 'उदय'
उफ़ ! अब वो दौर नहीं, लोग नेकी करें और दरिया में डाल दें !!
बहुत खुब , बहुत सुंदर गजल धन्यवाद