Sunday, February 6, 2011

उफ़ ! अब उन्हें खुद पे शर्म नहीं, गर्व होने लगा है !!

उफ़ ! बाप ही बेटी का गुनहगार निकला
पगड़ी पाँव में रख कमजोर निकला !
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जिन राहों की मंजिलें ही नहीं, उन पर अब चलना कैसा
सच ! आओ बैठें, सुकूं से बैठकर, कुछ मशवरे कर लें !
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आज किसी के आने से रौशन है जहां
काश ! उनका बसेरा यहीं होता !
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कभी हंसने, कभी रोने के गुर सीख लेते हैं
सच ! जिन्दगी एक पाठशाला है !
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गरीब जिन्दगीनुमा बोझ तले, दब के जी रहे हैं
सच ! साँसें चल रही हैं, बस मुक्त होना शेष हैं !
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जब से डूबे हैं तेरी आँखों में, बस डूबे हुए हैं
मिन्नतें कर ली हैं खुदा से, बस यहीं डूबे रहें !
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ये अपना देश है, यहाँ शिक्षण और प्रशिक्षण
उफ़ ! चहूँ ओर नेतागिरी के केम्प संचालित हैं !
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आज फिर कोई, मूरत बदल के बैठा है
खामोश है, नहीं तो पहचान लेते हम !
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करके गुनाह लोग, मस्ती में मस्त है
कोई बेक़सूर था जिसको फांसी चढ़ा दिए !
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उफ़ ! दो लोग मिलकर, जज्बे मोहब्बत के निभा नहीं पाते
चलो ठीक है, तुम कहते हो तो, मोहब्बती मजहब ही सही !
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इन नामों को देख कर, तो ऐसा लगता है 'उदय'
लोग असल नामों पर पर्दा डालने के फिराक में हैं !
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कुछ लोग खुद को बेच के शान से जी रहे हैं 'उदय'
उफ़ ! अब उन्हें खुद पे शर्म नहीं, गर्व होने लगा है !!
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2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पहले काला धन लोग छिपाकर खर्च करते थे, अब तो बेशर्म हो दिखाते हैं।

Deepak Saini said...

करके गुनाह लोग, मस्ती में मस्त है
कोई बेक़सूर था जिसको फांसी चढ़ा दिए

bahut khoob