इतने नाजुक थे हम, मोम बन पिघलते रहे
उफ़ ! लोग छूते भी रहे, साथ साथ डरते भी रहे !
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अब खामोश बन कर, और बदनाम न करो
सच ! जो भी कहना है, ज़रा खुल कर कहो !
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दम भरते रहे इश्क का, खुद पे नाज करते रहे
वादे, जज्बे, और दिल तोड़, गुनहगार चले गए !
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सच ! जब भी आती है, मेरे चेहरे पे मुस्कान
लोग बेवजह ही मुझे, दीवाना समझ लेते हैं !
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सच ! भले हो जाएं चकनाचूर, हम गद्दी नहीं देंगे
किसी के चीखने-चिल्लाने से, डरते नहीं हैं हम !
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सच ! ये माना हम पैदाईशी अमीर नहीं हैं
ये रियासत भ्रष्टाचारी हुनर की मिशाल है !
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गाँव, साप्ताहिक बाजार, और बचपन की यादें
सच ! एक एक पल, अब मुझे सताने लगे हैं !
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गर तुमने आँखों में सपने संजोये न होते
कसम 'उदय' की, हम लौट के आये न होते !
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सच ! ये दुनिया, नज़रों का धोखा हुई है 'उदय'
नीयत, सीरत, जज्बे, चाहत, सब बदले हुए हैं !
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अब जीवन को समझने की जुर्रत नहीं होती
एक दिन आजमाया, सुबह से शाम हो गई !
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टूट कर बिखरे सपने, हौसला न टूटने पाए
सच ! नए दौर में हम, नए सपने सझा लेंगे !
5 comments:
पर हौसला बना रहे।
सच ! जब भी आती है, मेरे चेहरे पे मुस्कान
लोग बेवजह ही मुझे, दीवाना समझ लेते हैं !
वाह, बहुत खूब।
लोगों का काम ही है- अर्थ का अनर्थ करना।
सभी शेर बेमिसाल हैं।
दम भरते रहे इश्क का, खुद पे नाज करते रहे
वादे, जज्बे, और दिल तोड़, गुनहगार चले गए !
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सभी शेर बहुत सुन्दर..
आदरणीय उदय जी..
नमस्कार
....वाह, बहुत खूब।
सभी शेर बहुत सुन्दर..
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
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