चापलूसी में गुजर करने का, लुत्फ़ ही अजीज है
सच ! कैसे गुजरता है दिन, मालुम नहीं पड़ता !
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ताज ! तेरी खूबसूरती बाअदब है
मेरे महबूब का चेहरा, फीका लगे है !
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पद्मश्री ! सम्मान तो सम्मान है 'उदय'
हमें तो रंग-रूप, बोली-वाणी से ऊंचा लगे है !
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चैन नहीं मिलता, इधर ढूंढा, उधर ढूंढा
उफ़ ! किधर जाएं, कहीं सुकूं नहीं दिखता !
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अब न ठहरेंगे, जो चल पड़े ये कदम
थक गए तो, कुछ देर हम सुस्ता लेंगे !
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यूं ही पत्थर समझ, हांथ में ले लो हमको
खौफ का मंजर है, शैतानों की बस्ती है !
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हम इजहार-ए-मोहब्बत करते रहे, तुम खामोश रहे
उफ़ ! अब हम ही गुनहगार हुए, लो कर लो बात !
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चिराग, चाँद, तारे, सूरज, न भी हों, फर्क नहीं पड़ता
सच ! जब तुम साथ होती हो, उजाले साथ चलते हैं !
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अरे भाई, पत्रकार हैं, इसका मतलब ये तो नहीं है 'उदय'
सच ! देश में लूट मची हो, और हम देखते रहें !
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हम और हमारे लोग निकम्मे नहीं है 'उदय'
सच ! विदेशी बैंकों में हमारे खाते हैं !
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भारत ! ये माना देश हमारा ही है 'उदय'
ये और बात है विदेशों में हमारी जमीनें हैं !!
2 comments:
कसा व्यंग।
हमेशा की तरह से बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
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