Thursday, February 3, 2011

... ये और बात है विदेशों में हमारी जमीनें हैं !!

चापलूसी में गुजर करने का, लुत्फ़ ही अजीज है
सच ! कैसे गुजरता है दिन, मालुम नहीं पड़ता !
...
ताज ! तेरी खूबसूरती बाअदब है
मेरे महबूब का चेहरा, फीका लगे है !
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पद्मश्री ! सम्मान तो सम्मान है 'उदय'
हमें तो रंग-रूप, बोली-वाणी से ऊंचा लगे है !
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चैन नहीं मिलता, इधर ढूंढा, उधर ढूंढा
उफ़ ! किधर जाएं, कहीं सुकूं नहीं दिखता !
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अब ठहरेंगे, जो चल पड़े ये कदम
थक गए तो, कुछ देर हम सुस्ता लेंगे !
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यूं
ही पत्थर समझ, हांथ में ले लो हमको
खौफ का मंजर है, शैतानों की बस्ती है !
...
हम इजहार--मोहब्बत करते रहे, तुम खामोश रहे
उफ़ ! अब हम ही गुनहगार हुए, लो कर लो बात !
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चिराग, चाँद, तारे, सूरज, भी हों, फर्क नहीं पड़ता
सच ! जब तुम साथ होती हो, उजाले साथ चलते हैं !
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अरे
भाई, पत्रकार हैं, इसका मतलब ये तो नहीं है 'उदय'
सच ! देश में लूट मची हो, और हम देखते रहें !
...
हम और हमारे लोग निकम्मे नहीं है 'उदय'
सच ! विदेशी बैंकों में हमारे खाते हैं !
...
भारत ! ये माना देश हमारा ही है 'उदय'
ये और बात है विदेशों में हमारी जमीनें हैं !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कसा व्यंग।

राज भाटिय़ा said...

हमेशा की तरह से बहुत सुंदर रचना धन्यवाद