हमदर्दी की बातें, मौकापरस्ती का आलम है
जिधर देखो उधर, फरेब ही फरेब है 'उदय' !
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जिन्दगी, ठिकाने, दीपक, उजाले, जमीं, आसमां
सच ! गिले-शिकवे भुलाकर, चलो मिलकर संवारें !
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उफ़ ! मुहब्बत झूठी निकल गई
सच ! चाँद गवाह बना देखता रहा !
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किसे अपना, किसे बेगाना समझें 'उदय'
राजनीति है, कहाँ ईमान नजर आता है !
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काश आईना मेरा, मुझसा हो जाता
रक्त से सना मेरा, चेहरा छिपा जाता !
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गरीबी, मंहगाई, भूख, अब जीने नहीं देती
उफ़ ! क्या करें, मौत भी इम्तिहां ले रही है !
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आज आईने में देखा, खुद मेरा चेहरा बदला हुआ था 'उदय'
फिर पड़ोस, गाँव, शहर, विदेशी चेहरों पे यकीं कैसे करते !
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खुशियाँ बार बार मुझे निहार रही थीं
और मैं सहमा सा उन्हें देख रहा था !
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ताउम्र वह खर्चे के समय, एक एक सिक्के को रोता रहा
सुबह लाश उठाई, बिस्तर पे नोटों की चादर बिछी थी !
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पद और पैसे के लिए ईमान बेच रहे हैं
खुदगर्जी का आलम, सरेआम हो गया !
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कुछ कहते फिर रहे, फ़रिश्ते खुद को 'उदय'
हम जानते हैं, कल तक वो ईमान बेचते थे !
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क्या खूब, खुबसूरती समेटी गई है
सच ! तस्वीर, ख़ूबसूरत हो गई है !
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तेरी जुल्फों में जो उलझा हूँ
सच ! वक्त, ठहर सा गया है !
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तिरे आगोश में, सिमट गया हूँ मैं
ढूँढता हूँ खुद को, कहीं खो गया हूँ मैं !
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प्यार, मोहब्बत, जज्बे, जंग हो गए
सच ! चलो किसी को जीत लें हम !
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बाजार बहुत मंहगा हुआ है
चलो वहां कुछ देर घूम आएं !
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16 comments:
अत्यंत व्यस्तता के कारण आपकी रचनाएं समय पर नहीं पढ़ सका, खेद है.....
बाजार बहुत महँगा हुआ,
चलो कुछ देर घूम आयें...
वाह जी वाह.......
जिन्दगी, ठिकाने, दीपक, उजाले, जमीं, आसमां
सच ! गिले-शिकवे भुलाकर, चलो मिलकर संवारें
सुंदर ग़ज़ल.....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं....
हर पंक्ति कुछ नया बयां करती हुयी।
'kuchh kahte fir rahe farishte khud ko uday
ham jante hain, kal tak wo imaan benchte the'
achchha sher !
एक बेहतरीन प्रस्तुति।
बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई प्रस्तुति.......
ताउम्र वह खर्चे के समय, एक एक सिक्के को रोता रहा
सुबह लाश उठाई, बिस्तर पे नोटों की चादर बिछी थी !
हर शेर अपने आप में सच बयाँ करता हुआ ..बहुत खूब
इस प्रकार की दो-दो पंक्तियाँ लिखते-लिखते आप आज की चेतना का इतिहास रच रहे हैं.
बाजार बहुत महँगा हुआ,
चलो कुछ देर घूम आयें...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|
किसे अपना, किसे बेगाना समझें 'उदय'
राजनीति है, कहाँ ईमान नजर आता है ..
VAAH ... KYA BAAT HAI ...
Great !
किसे अपना, किसे बेगाना समझें 'उदय'
राजनीति है, कहाँ ईमान नजर आता है !
वान इन पंक्तियों ने बेहद प्रभावित किया....आभार !!
Har pankti paripakwa vichaaron ki garima se labrej.
Uday ji, aapki lekhani ko naman.
उदय जी आपके पास आना ही पड़ेगा..
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
... please welcome !!
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
... shukriyaa !!
@ Bhushan
... badappan hai aapkaa !!
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