कभी अन्दर, कभी बाहर, मैं खुद को ढूँढता हूँ
न जाने किस घड़ी खोया, अब मैं सोचता हूँ !
.....
गलत फहमियों की आग को भभकने मत देना 'उदय'
रिश्ते, मित्र, चाहत, और जज्बात, सब झुलस जाते हैं !
.....
जख्मों की नुमाईश, उफ़ ! छिपाकर रखना यारो
क्या अपने, क्या पराये, कुरेदने में सभी माहिर हैं !
.....
सर्दी, बारिश, गर्मी, भूख, गरीबी, सभी बेरहम हो रहे हैं 'उदय'
जानवर हो या इंसान, नेस्त-नाबुत मकसद हो गया है उनका !
.....
जब खामोशियों में, कुछ हासिल न हुआ 'उदय'
चलो कुछ बोल देते हैं, गर रूठ गई, तब देखेंगे !
.....
10 comments:
हां, जब ख़ामोशियों से कुछ न बने तो बोल ही देना चाहिए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
गलतफहमियाँ तो सब जला देती हैं।
अत्यंत ही सुन्दर प्रस्तुति......आभार
ग़ज़ब की प्रस्तुति.... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
कुरेदते रहते हैं वो घाव परत दर परत,
और कहते हैं घाव अभी हरे हैं,
हरियाली देखने का उनका अंदाज़ नया है ।
गलत फहमियों की आग को भभकने मत देना 'उदय'
रिश्ते, मित्र, चाहत, और जज्बात, सब झुलस जाते हैं !
सुन्दर प्रस्तुति
जब खामोशियों में, कुछ हासिल न हुआ 'उदय'
चलो कुछ बोल देते हैं, गर रूठ गई, तब देखेंगे !
अब बोल ही दीजिये रूठने पर देखा जायेगा
बहुत सुंदर लिखा जी धन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति...
उम्दा भाव।
गज़ल के मीटर में लिखते तो ज्यादा प्रभावी होता।
Post a Comment