हाँ भई, मैं खबरीलाल ही हूँ
नहीं, मैं दलाल नहीं हूँ
और न ही बिचौलिया हूँ
हाँ, अगर आप चाहें तो
मुझे एक गुड मैनेजर
एक्सपर्ट, या को-आर्डीनेटर
कह, या सोच सकते हैं !
हाँ, अब मैं भी लिखते-पढ़ते
झूठ-सच बयां करते करते
खिलाडियों का खिलाड़ी हो गया हूँ
कब, किसको पटकनी देना
और किसको पंदौली दे उठाना है
इशारों ही इशारों में समझ कर
शह-मात की चालें चल रहा हूँ !
क्यों ..... क्योंकि मैं भी
कभी कभी मंत्रियों-अफसरों
और उद्योगपतियों के साथ
उठ-बैठ व सांठ-गांठ कर
छोटे-मोटे काम बेख़ौफ़
निपटा-सुलझा-उलझा रहा हूँ
और मैनेजमेंट गुरु बन गया हूँ !
भला इसमें बुराई ही क्या है
नेता-अफसर-मंत्री सभी तो
यही सब कुछ कर रहे हैं
छोटे-बड़ों को मैनेज कर रहे हैं
मुझे भी लगा, मौक़ा मिला
मैं भी कूद पडा मैदान में
अब गुरुओं का गुरु बन गया हूँ !!!
18 comments:
गुरु-घंटालों का ही जमाना है..
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
Guru ji,
namaskar
hume bhi apni sharan me le lo
Guru ji,
namaskar
hume bhi apni sharan me le lo
अब गुरुओं का गुरु बन गया हूँ !!!
जय हो मैनेजमेंट गुरू की
मेनेजमेंट गुरू, वाह क्या बात है
दलालो का नया नाम
shandaar our jaandaar lekhan...bahut badhiya likha hai...system par teekhaa kataks.
@ संजय भास्कर
... saare guru raajdhaanee men viraaje huye hain ... !!!
बढ़िया है ..सभी मैनेज कर रहे हैं ...अच्छा व्यंग
ये भी खूब रही…………बढिया व्यंग्य्।
शानदार व जानदार प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया !
बहुत सुन्दर ,करारा व्यंग .....
क्यों ..... क्योंकि मैं भी
कभी कभी मंत्रियों-अफसरों
और उद्योगपतियों के साथ
उठ-बैठ व सांठ-गांठ कर
छोटे-मोटे काम बेख़ौफ़
निपटा-सुलझा-उलझा रहा हूँ
और मैनेजमेंट गुरु बन गया हूँ !
Mubarak..mubarak...ha,ha! Warna aur kya kahun??
शानदार प्रस्तुती.....और एकबात उदय जी ऐसे गुरु घंटाल तो हर गांव हर शहर में मिल जायेंगे आपको इस तरह का गुरु बनना अब जीने की मजबूरी बनती जा रही है ....हर कोई अपने बुद्धि का दुरूपयोग करने को ही जिन्दगी जीने का आधार मानने लगा है मनमोहन सिंह और प्रतिभा पाटिल जैसे गुरु घंटालों को देखकर .........इन लोगों के निकम्मेपन की वजह से शर्मनाक हालात हैं इस देश और समाज की.....
संसार में न कुछ भला है न बुरा, केवल विचार ही उसे भला-बुरा बना देते हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद - भारतीयता के प्रतीक
यथार्थ है ,ये लोग समाज के आवश्यक अंग हो गये हैं और इज्जतदार भी ।
बहुत बढ़िया...
सादर....
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