Wednesday, September 22, 2010

ये आज की बात नहीं ..... रोज की मोहब्बत हैं !!!

हमने उससे तो
कुछ कहा ही नहीं,
वो जो रूठा था
बस रूठा था
अब चल के कैसे
हम मना लें उसे,
क्या करें फ़रियाद
और संभालें उसे

उसका रूठना भी
गजब ढाता है
होते हैं सामने
पर गुमसुम होतें है
उसकी ये अदा भी
जाने क्यूं
मुझको भाती है
खामोशियों में भी
मोहब्बत झलक जाती है

अजब होती हैं
रश्में मोहब्बत की
बजह भी हो
बे-वजह रूठ जाते हैं
रूठते भी हैं तो
बहुत इतराते हैं
हमको मालूम है
वो बे-वजह ही
रूठकर बैठे हैं
ये आज की बात नहीं
रोज की मोहब्बत हैं !

7 comments:

संजय भास्‍कर said...

मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.

संजय भास्‍कर said...

कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

प्रवीण पाण्डेय said...

रूठने मनाने को प्यार का अंग समझा जाय।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बेहतरीन, रूठे हुए को मनाया जाय

Majaal said...

आज कल भाईसाहब की तबीयत कुछ अलग ही मूड में लग रही है ..

ZEAL said...

खामोशियों में भी
मोहब्बत झलक जाती है

Beautiful line !

.

M VERMA said...

ये आज की बात नहीं
रोज की मोहब्बत हैं !
अद्भुत है यह रोज की मोहब्बत ..