हाँ याद है मुझे
शाम छत पर
टहलना तेरा
और घंटों
चिड़ियों सा
फुदकना तेरा
और राहों पर
आँखों का
भटकना तेरा
हाँ याद है मुझे
वो सब याद है !
राहों में मिलना
और गुमसुम सा
गुजर जाना तेरा
न कहना
जुबां से कुछ
पर आँखों से
हाँ करना तेरा
हाँ याद है मुझे
सखियों से लड़ना
मेरे लिए
झगड़ पड़ना तेरा
हाँ याद तो है
वो सर्द भरी सुबह
कंपकंपाना तेरा
मेरी ओर दौड़ना
और ठहर जाना तेरा
और हाँ वो पल
बिदाई के भी
याद हैं मुझे
नजरें चुरा कर
बिदा होना तेरा
हाँ याद तो
और भी
बहुत कुछ है
बस यादें
यादें ही तो हैं
तेरे - मेरे बीच !
5 comments:
और हाँ वो पल
बिदाई के भी
याद हैं मुझे
नजरें चुरा कर
बिदा होना तेरा
bhaut badhiya kavita....
यादें ही तो पुल है जो अब तक जोड़े है दो पाटों को। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
ओह! कुछ यादें तो ऐसी बस जाती हैं कि जाने का नाम नही लेतीं………………छोटे छोटे शब्दो मे भावनाओं को बखूबी पिरोया है।
यानि अब तो यादों के सहारे ही जीना है ।
यादों को याद करना भी सुखद लगता है ।
बहुत सुंदर यादे है जी, धन्यवाद
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