हमने उससे तो
कुछ कहा ही नहीं,
वो जो रूठा था
बस रूठा था
अब चल के कैसे
हम मना लें उसे,
क्या करें फ़रियाद
और संभालें उसे
उसका रूठना भी
गजब ढाता है
होते हैं सामने
पर गुमसुम होतें है
उसकी ये अदा भी
न जाने क्यूं
मुझको भाती है
खामोशियों में भी
मोहब्बत झलक जाती है
अजब होती हैं
रश्में मोहब्बत की
बजह न भी हो
बे-वजह रूठ जाते हैं
रूठते भी हैं तो
बहुत इतराते हैं
हमको मालूम है
वो बे-वजह ही
रूठकर बैठे हैं
ये आज की बात नहीं
रोज की मोहब्बत हैं !
7 comments:
मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
रूठने मनाने को प्यार का अंग समझा जाय।
बेहतरीन, रूठे हुए को मनाया जाय
आज कल भाईसाहब की तबीयत कुछ अलग ही मूड में लग रही है ..
खामोशियों में भी
मोहब्बत झलक जाती है
Beautiful line !
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ये आज की बात नहीं
रोज की मोहब्बत हैं !
अद्भुत है यह रोज की मोहब्बत ..
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