बोल बम बोल बम गूँज रहा था
बाहर कोई बेवजह बम फोड़ रहा था
मर गए दो-चार बम फूटने से
क्या मिला उनको बम फोड़ने से ।
अल्लाह-ओ-अकबर के नारे गूँज रहे थे
बाहर कोई बेवजह बम फोड़ रहा था
मर गए आठ-दस बम फूटने से
क्या मिला उनको बम फोड़ने से ।
जय माता दी, जय माता दी सब गा रहे थे
बाहर कोई बेवजह बम फोड़ रहा था
मर गए तीन-चार बम फूटने से
क्या मिला उनको बम फोड़ने से !
8 comments:
बहुत अच्छी कविता।
बेहतरीन उम्दा पोस्ट-अच्छा बम फ़ोड़े हैं दादा सुबह सुबह
आपकी ब्लॉग4वार्ता
चेतावनी-सावधान ब्लागर्स--अवश्य पढ़ें
बहुत बढ़िआ!
सारे पागल, और सारे बराबर!
'मजाल' ख़त्म होता दिखता नहीं बवाल ये!
जय माता दी, जय माता दी सब गा रहे थे
बाहर कोई बेवजह बम फोड़ रहा था
मर गए तीन-चार बम फूटने से
क्या मिला उनको बम फोड़ने से ! ....बहुत बढ़िआ
बढि़या बम.
बोल बम!
जब व्यक्ति पर स्वार्थ हावी हो जाता है तो उसमे से इंसानियत ख़त्म हो जाती है, फिर चाहे वो राजनीती को लेकर हो या फिर धर्म को लेकर, फिर बम फोड़ने का काम हो या भाई को मरना, उसके लिए कोई मायने नहीं रखता ।
और आजकल तो सभी धर्मं के नाम पर व्यापार कर रहें हैं। btw कविता अच्छी लगी ज़नाब
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनायें
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर-स्वागत है....
आतंक वाद कब तक झेलेगें हम
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