Sunday, August 15, 2010

शायद ! वो सही हों !

जीवन में हर क्षण
उतार-चढ़ाव भरे हैं
कभी खुशी-कभी गम
कभी खुद-कभी अपने
इन सब के बीच
जीवन चलता रहता है
पर कभी कभी मन
कुछ नया सोचता है
तय भी करता है
पर चलने की कोशिश
दो कदम चलकर
ठहर जाती है
जाने क्यों !
मन आगे बढ़ने से
रोकता सा लगता है
आज चिंतन करते हुए
मुझे महसूस हुआ
ये मन नहीं करता
मन में बसे अपने हैं
जो छिटकने से रोकते हैं
पकडे रखना चाहते हैं
खुद से, खुद के लिए
शायद ! वो सही हों !

9 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!


स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

Shah Nawaz said...

बेहतरीन रचना!

Dev said...

लाजवाब रचना ..........बहुत खूब

Anamikaghatak said...

bahut sundar rachana..........

Majaal said...

इस तरह तोड़ कर,
गद्य को पद्य करने से,
गद्य पद्य बन जाता है,
क्या, क्यों और किसलिए?
'मजाल' अक्सर सोचता है,
पर कुछ समझ नहीं आता!

شہروز said...

जीवन में हर क्षण
उतार-चढ़ाव भरे हैं
कभी खुशी-कभी गम

भाई यह सच है और यही सच है!!

samay हो तो अवश्य पढ़ें:

पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html

निर्मला कपिला said...

मन में बसे अपने हैं
जो छिटकने से रोकते हैं
पकडे रखना चाहते हैं
खुद से, खुद के लिए
शायद ! वो सही हों !
बिलकुल सही है तभी तो ज़िन्दगी चलती रहती है। बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई

Unknown said...

अच्छा लिखा है आपने!

मेरा ब्लॉग
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छा धन्यवाद .---अशोक बजाज ग्राम-चौपाल