Sunday, July 11, 2010

क्या हम गुलाम हैं !

..... यह मनन करने योग्य है, सुबह से उठकर रात के सोने तक क्या हम वह ही करते हैं जो मन कहता जाता है, चाय, दूध, नाश्ता, पान, गुटका, जूस, मदिरा, वेज, नानवेज, प्यार, सेक्स, दोस्ती, दुश्मनी, चाहत, नफ़रत ... संभवत: वह सब करते हैं जो मन कहता जाता है .....

क्या हम मन के गुलाम हैं !

10 comments:

Udan Tashtari said...

मन की गुलामी छूट जाये तो साधु हो जायेंगे. :)

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बस यही गुलामी ही स्वतंत्रता है।

अब चाहे इसे गु्लामी समझा जाए
या स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार्।

जय हो

Dev said...

ये मन तो बावरा है ....

1st choice said...

अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।

1st choice said...

अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।

1st choice said...

अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।

1st choice said...

अंकल अंकल हम भी आचार्य जी बनूंगा।

S.M.Masoom said...

हम अपनी इछाओं के ग़ुलाम हैं. इच्छाओं का कोई अंत नहीं.

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhaai jaan hm mn se zyaada mjburi ke ghulaam hen or sch sir yhi he. akhtar khan akela kota rajsthan

सूर्यकान्त गुप्ता said...

मन चंचल बड़ा शरारती कौन नही इसका गुलाम भवसागर पार का साधन 'कलयुग' मे प्राण छूटने से पहले कोई ले लेता राम का नाम। जय जोहार्……