Friday, July 9, 2010

शेर

जब से छोडी हैं बच्चों ने उडानी पतंगें
तब से आसमां भी बदरंग-सा लगने लगा है।

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दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं।

10 comments:

समयचक्र said...

दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं...

बहुत बढ़िया उदय जी

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढ़िया

Udan Tashtari said...

दोनों ही शेर...बहुत जबरदस्त!!

kshama said...

इस लिए तकदीर में,
मेहनत के पैबंद सिया करती थी ||
Bahut anootha sher hai!
Waise,pahla wala bhi bahut sundar hai!

आचार्य उदय said...

सुन्दर लेखन।

1st choice said...

अंकल मुझे पतंग उडाना है।

1st choice said...

अंकल मुझे शेर के बच्चे चाहिये।

राज भाटिय़ा said...

वाह जी उम्दा शेर है

1st choice said...

अंकल मै छत पर पतंग उडा रहा हूं।

संजय भास्‍कर said...

उम्दा शेर है......