"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Monday, May 24, 2010
रास्ते
आजफ़िररास्ते दो-राहेसे लगते हैं इधर या उधर तय करना कठिन कदम उठें तोकिसओर येउलझनें हैं मन में हार भी सकता हूं जीत भी सकता हूं क्या सचमुच यही जिंदगी है !!!
7 comments:
उम्दा रचना..बधाई.
हार जित की परवाह किये वगैर सत्य,न्याय और मानवता के राह पर निकल पड़िये / यही सर्वोत्तम मार्ग है /
जिंदगी तो इसीका नाम है ...
बहुत सुंदर
बहुत ही उम्दा.
रामराम.
बेहतरीन!१
डायरी के और पन्ने पलटाईये जल्दी जल्दी!!
पुरानी यादें
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