Monday, May 24, 2010

रास्ते

आज फ़िर रास्ते
दो-राहे से लगते हैं
इधर या उधर
तय करना कठिन
कदम उठें
तो किस ओर
ये उलझनें हैं मन में
हार भी सकता हूं
जीत भी सकता हूं
क्या सचमुच
यही जिंदगी है !!!

7 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

उम्दा रचना..बधाई.

honesty project democracy said...

हार जित की परवाह किये वगैर सत्य,न्याय और मानवता के राह पर निकल पड़िये / यही सर्वोत्तम मार्ग है /

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

जिंदगी तो इसीका नाम है ...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही उम्दा.

रामराम.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!१

डायरी के और पन्ने पलटाईये जल्दी जल्दी!!

Vinay said...

पुरानी यादें