Thursday, May 20, 2010

अर्जुन व कर्ण ... बलशाली कौन ???

चलो आज एक सुनी-सुनाई प्रस्तुत है : -

महाभारत काल में रणभूमि में कौरव व पाण्डवों के बीच युद्द चल रहा था .... आमने-सामने अर्जुन व कर्ण ... अर्जुन व कर्ण जब एक-दूसरे पर वाण चलाते तो वार तो कट जा रहा था ... पर अर्जुन के वार से कर्ण का रथ चार कदम पीछे चला जाता था और कर्ण के वार से अर्जुन का रथ दो कदम पीछे जाता था ... इसी बात पर विश्राम के समय में अर्जुन इठलाते हुये श्रीकृष्ण से कहते हैं कि देखिये आप कहते हैं कि कर्ण मुझसे भी ज्यादा बल शाली है, देखा आपने आज मेरे आक्रमण से कर्ण का रथ चार कदम पीछे और उसके आक्रमण पर अपना रथ मात्र दो कदम पीछे जा रहा था यह प्रमाणित हो रहा है कि मैं कर्ण से ज्यादा बलशाली हूं ... श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये कहते हैं ... हे वत्स अर्जुन ये तुम्हारा अहं बोल रहा है मैं अब भी कहता हूं कर्ण ज्यादा बलशाली है वो इसलिये जब तुम्हारे रथ पर हनुमान जी का ध्वजारूपी जो झंडा लगा है उस पर उनका आशिर्वाद है और साक्षात मैं तुम्हारा सारथी हूं फ़िर भी तुम्हारा रथ पीछे चला जा रहा है इससे अब तुम स्वयं अंदाजा लगा सकते हो कि कौन ज्यादा बलशाली है .... यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो ..... !!!!

19 comments:

डॉ टी एस दराल said...

यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो .....

सही बात । सभी पर लागू होती है।

honesty project democracy said...

धर्म का साथ देने वाला ही बलशाली कहलाता है, नतीजा चाहे जो भी हो / हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

SANSKRITJAGAT said...

इस एक जगह के उद्धरण से कर्ण अर्जन से वीर साबित नहीं होता । विराट युद्ध और द्रुपद के साथ युद्ध कुछ और ही कहानी कहते हैं ।

दिवाकर मणि said...

बिल्कुल सही बात....
अर्जुन भी धर्म की लड़ाई लड़ रहे थे, और कर्ण भी। लेकिन अर्जुन की तुलना में कर्ण के धर्म का आधार ज्यादा व्यापक था। अर्जुन के धर्मयुद्ध में स्वार्थ भी सन्निहित था, वहीं कर्ण निरासक्त भाव से मित्रता धर्म को निभा रहा था।

रंजना said...

सत्य है....अर्जुन यदि धर्म के पक्ष में न होता और उसके रक्षक तथा पथप्रदर्शक कृष्ण न होते तो अर्जुन कर्ण से कभी जीत न पाता...

ZEAL said...

कर्ण निरासक्त भाव से मित्रता धर्म को निभा रहा था।....

Diwakar ji se sehmat.

Nice post !

Girish Kumar Billore said...

जारी रखो इग्नोर मत करो
वाह समयानूकूल बोध कथा

ताऊ रामपुरिया said...

महाभारत का बहुत ही सुंदर दृष्टांत लिखा है आपने. जीवन के हर क्षेत्र में इसको आजमाया जा सकता है, हर कहीं फ़िट बैठेगा. इसीलिये कहते हैं कि महाभारत में पूरा जीवन दिखाई देता है.

रामराम.

दिवाकर मणि said...

महाभारत के बारे में एक उक्ति है:-
"यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्‌ क्वचित्‌" अर्थात्‌ जो यहाँ (महाभारत में) है, वह हर जगह है, और जो यहाँ नहीं है, वह कहीं नहीं है।
-----------
एम.फिल. के अपने शोध-प्रबंध के रूप में मैंने "महाभारत की ऑनलाइन अनुक्रमणिका" पर काम किया है, जिसे आप http://sanskrit.jnu.ac.in/mb पर देख सकते हैं।

राज भाटिय़ा said...

यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो . सही कहा आप ने कर्ण था तो अर्जुन से ज्यादा बल शाली लेकिन अधर्मियो के संग खडा था.
धन्यवाद

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

very true...........

दिलीप said...

sach kaha Karn ka jeevan bhi ek aadarsh hai...sabse durbhagyashaali paatr hone ke baad bhi mahabharat ka ek pramukh paatr ban ke ubhre wo...

M VERMA said...

प्रासंगिक

मनोज कुमार said...

आधुनिकता के साथ साथ सांस्‍कृतिक परंपरा की झलक।

Udan Tashtari said...

यह तो अधर्म के विरुद्ध धर्म की लडाई है तुम तो अपना कर्म जारी रखो ..

जीता धर्म...

न अर्जुन न कर्ण!!

Unknown said...

बहुत सुन्दर उद्धरण!

सच तो यही है कि कर्ण ही अधिक बलशाली थे इसीलिये छलपूर्वक उनसे उनके कवच कुण्डल को दानस्वरूप ले लिया गया।

Unknown said...

karn ek mahan yodha the,sache mitra the, unka mahan vayktitav unko mahabharat main sabse alag pahchan deta hai.

Unknown said...

कर्ण अर्जुन से अधिक शक्तिशाली थे अगर भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ न होते तो अर्जुन मारे जाते!

Unknown said...

Karn ek mahan yodha the