Monday, May 3, 2010

कालाधन (पार्ट-३)

काला धन कहां से आता है!! ... काला धन कैसे बनता है!!! ... कालेधन की माया ही अपरमपार है, बात दर-असल ये है कि धन की उत्पत्ति वो भी काले रूप में ... क्या ये संभव है! ... जी हां, ये बिलकुल सम्भव है पर इसे शाब्दिक रूप में अभिव्यक्त करना बेहद कठिन है, वो इसलिये कि जिसकी उत्पत्ति के सूत्र हमें जाहिरा तौर पर बेहद सरल दिखाई देते हैं वास्तव में उतने सरल नहीं हैं ...

... हम बोलचाल की भाषा में रिश्वत की रकम, टैक्स चोरी की रकम इत्यादि को ही कालेधन के रूप में देखते हैं और उसे ही कालाधन मान लेते हैं ... मेरा मानना है कि ये कालेधन के सुक्ष्म हिस्से हैं, वो इसलिये कि रिश्वत के रूप में दी जाने वाली रकम तथा टैक्स चोरी के लिये व्यापारियों व कारोबारियों के हाथ में आने वाली रकम ... आखिर आती कहां से है ...

... अगर आने वाली रकम "व्हाईट मनी" है तो क्या ये संभव है कि देने वाला उसका लेखा-जोखा नहीं रखेगा और लेने वाले को काला-पीला करने का सुनहरा अवसर दे देगा ... नहीं ... बिलकुल नहीं ... बात दर-असल ये है कि ये रकम भी कालेधन का ही हिस्सा होती है ... इसलिये ही तो देने वाला देकर और लेने वाला लेकर ... पलटकर एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं देखते ...

... तो फ़िर कालेधन कि मूल उत्पत्ति कहां से है ... कालेधन की उत्पत्ति की जड हमारे भ्रष्ट सिस्टम में है ... होता ये है कि जब किसी सरकारी कार्य के संपादन के लिये १००० करोड रुपये स्वीकृत होते हैं और काम होता है मात्र १०० करोड रुपयों का ... बचने वाले ९०० करोड रुपये स्वमेव कालेधन का रूप ले लेते हैं ... क्यों, क्योंकि इन बचे हुये ९०० करोड रुपयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रहता, पर ये रकम बंटकर विभिन्न लोगों के हाथों/जेबों में बिखर जाती है ... और फ़िर शुरु होता है इसी बिखरी रकम से लेन-देन, खरीदी-बिक्री, रिश्वत व टैक्स चोरी, मौज-मस्ती, सैर-सपाटे जैसे कारनामें ... क्या सचमुच यही कालाधन है !!!!!

13 comments:

honesty project democracy said...

बहुत ही अच्छी बात है, इस काले धन को नंगा किये वगैर मत छोड़ना , आपके इस प्रयास के लिए धन्यवाद /

राज भाटिय़ा said...

बहुत सही ढंग से समझाया है आप ने इस काले ध्न को

jamos jhalla said...

भैया जी दरअसल आज कल खुद का [जैसे भी]कमाया हुआ धन सफ़ेद और दूसरे का धन काला ही दिखाई देता है|शायद येही कारण है काले धन की बड़ती महिमा का

कडुवासच said...

... ब्लागवाणी पर दो दुर्लभ सज्जनों द्वारा इस पोस्ट पर "दो नापसंद" का चटका लगा दिया ... दोनो का आभार !!!!

राजकुमार सोनी said...

नापंसन्द का चटका लगाने वालों की चिन्ता मत किया करो भाई मेरे। यदि कुछ लोग आपको नापसन्द कर रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि वे आपको पढ़ रहे हैं। यदि बगैर पढ़े भी कोई नापसन्द कर रहा है तो मतलब साफ है कि कोई न कोई आपसे जलता है। अरे भाई श्यामजी जलने वालों की जलन बढ़ाने का काम करो। जब सारा शरीर तपने लगे तो भाइयों बता देना मेरे एक दोस्त ने इन दिनों बरनाल की एजेंसी ले रखी है।

राजकुमार सोनी said...

आप तो लगे रहो भाई।

राजकुमार सोनी said...

छत्तीसगढ़ में जल्द ही एक ब्लागर मीट का आयोजन किए जाने पर विचार चल रहा है। कल-परसो फोन से बातचीत करता हूं। आप भी एक सूची बनाओं कि अपन किसे सम्मानित कर सकते हैं।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत पहले एक फिल्म आई थी....... काले धंधे , गोरे लोग..... कुछ ऐसा ही हाल काले धन का भी है.... बहुत अच्छी लग रही है आपकी यह सिरीज़....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

नापंसन्द का चटका लगाने वालों की चिन्ता मत किया करो भाई मेरे। यदि कुछ लोग आपको नापसन्द कर रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि वे आपको पढ़ रहे हैं। यदि बगैर पढ़े भी कोई नापसन्द कर रहा है तो मतलब साफ है कि कोई न कोई आपसे जलता है।

कडुवासच said...

राजकुमार भाई व महफ़ूज भाई
... इन नापसंद के चटकों से व्यवस्था खराब हो रही है ... अपन तो परवाह ही नहीं करते पर नजर अंदाज करना भी ठीक नहीं है ... ये साले किसी भी पोस्ट को नापसंद का चटका लगा सकते हैं ... ये लेखन के क्षेत्र का भ्रष्टाचार है इस पर भी अंकुश लगाना जरुरी है !!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

श्याम भाई
टिप्पणी ना लौटा पाना भी एक जुर्म है,
कहीं मुकदमा ना हो जाए

देखिए हमारे उपर तो टिप्पणी लौटाने के लिए
मुकदमें की तैयारी हो रही है, टिप्पणी
लौटाने की धमकी दी जा रही है आप
यहां पर दे्खिए:)

जय टिप्पणी माता
जय टिप्पणी माता

मेरी एक मुफ़्त सलाह मानो तो काले धन से ज्यादा आवश्यक टिप्पणी लौटाना है। बस यह काम प्रारंभ किजिए।

praphulla said...

BHAIYA AAPNE BAHUT HI ACHCHHA PRASHN UTHAYA HAI. AB AAGE BHI CHARCHA JARI RAKHNA KI ANKHIR KALE DHAN KI MOOL UTPATTI KAHA SE HOTI HAI AUR ISKA JANMDATA KAUN HAI, KYA YE APNA SYSTEM YA AAJ KA UPBHOKTAWAD???.

arvind said...

जब किसी सरकारी कार्य के संपादन के लिये १००० करोड रुपये स्वीकृत होते हैं और काम होता है मात्र १०० करोड रुपयों का ... बचने वाले ९०० करोड रुपये स्वमेव कालेधन का रूप ले लेते हैं......bilkul sahi. kaladhan ko nanga kijiye. ham aapke saath hain.bahut acchaa lay pakadaa hai aapne....subhakaamanaaye.