Saturday, May 1, 2010

हम - तुम !

फूल - खुशबू
रंग - गुलाल
जमीं - आसमां
हम - तुम

हंसते - खेलते
खट्टे - मीठे
नौंक - झौंक
तू-तू - मैं-मैं

हार - जीत
गम - खुशी
रास्ते
- मंजिलें
सफ़र - हमसफ़र

चलो -चलें
कदम - कदम
एक - एक
हम - तुम

गिले - शिकबे
तना -तनी
भूल - भुलैय्या
क्यों - क्यों

मीठे - मीठे
सपने - अपने
चलो - चलें
हम - तुम !

16 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आज तो फ़िर बाजा फ़ाड़ दिए,क्या लिखा है, चलो चलें कदम कदम एक एक हम तुम। बहुत ही सुंदर बिंब है। साथ कदम मिलेंगे साथ चलेंगे तो मंजिल तक पहुंच ही जाएगे हम तुम्।

कितना अद्भुत दृश्य खींचा है आपने,गहरे भावों के साथ अभिव्यक्ति, बस इसी तरह लिखते रहिए।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

गहरे भावों के साथ अभिव्यक्ति, बस इसी तरह लिखते रहिए।

honesty project democracy said...

उदय जी आज तो आपने फटे बाजे और दिमाग को भी फार कविता बना डाली / आज फिर आप कुछ लोगों को जाहिल टिपण्णीकारों की लिस्ट में शामिल करने की शाजिश रच रहें हैं /

Dev said...

वाह!! बेहतरीन रचना ......

M VERMA said...

क्या कहूँ मैं तो तारतम्य में ही खो गया
बहुत सुन्दर
आपका असली रूप तो ये है, कभी कभी कहीं और उलझ जाते हैं --- है ना

रश्मि प्रभा... said...

jab hum tum saath hain to sare raaste sahaj hain

हिंदीब्लॉगजगत said...
This comment has been removed by the author.
कडुवासच said...

@Hindiblog Jagat
... अरे मेरे ध्यान से ... व्यस्थता चल रही है ... बिलकुल मैंने कहा था ... आपके शोरूम / जंतर-मंतर / भूल-भुलैय्या / अपनी डफ़ली - अपना राग ... शायद ऎसा ही कुछ कहा था ... याद है ... याद है और रहेगा ... किसी दिन फ़ुर्सत में रहूंगा तो निश्चिततौर पर ... जब "ब्लागवाणी / अहा ! जिंदगी / बिनाका गीतमाला" पर लोगों का ध्यान केंद्रित करा दिया तो आप .... !!!!!!!

Kumar Jaljala said...

जंगल-जंगल बात चली है पता चला है.. अरे चड्डी पहनके फूल खिला है.. फूल खिला है.
जंगल-जंगल पता चला है, चड़डी पहनके फूल खिला है। अरे भाई ब्लागजगत को एक गुलजार मिल गया और आप लोग कुछ भी टिप्पणी कर रहे हो। ई न चलबै।
आओ प्यारे मेरे साथ गाओ-लकड़ी की काठी-काठी पे घोड़ा, घोड़े की दुम पर जो मारा हथौड़ा, दुम उठाके दौड़ा घोड़ा।
वैसे तो घोड़ा कुछ और उठाके भी दौड़ सकता है लेकिन फिलहाल दुम उठाके ही दौड़ ही रहा है। भईया उदय साहब आप किसी की बात पर ध्यान मत दीजिए और अपने मन और दिल की करिए। दिल मांगे मोर... चोर मचाए शोर।
शोर से याद आया एक प्यार का नगमा है और मौंजों की रवानी है... जिन्दगी कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है। तेरी-मेरी कहानी शीर्षक से हर बात पर खुजाने वाले महेश भट्ट ने एक फिल्म बनाई थी वह फ्लाप हो गई।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

नवरस से भरी कविता
बहुत सुन्दर

राज भाटिय़ा said...

वाह भाई दो ही शव्दो मै आप ने कमाल कर दिया, बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

कडुवा - सच ....

संगीता पुरी said...

गिले - शिकबे
तना -तनी
भूल - भुलैय्या
क्यों - क्यों

मीठे - मीठे
सपने - अपने
चलो - चलें
हम - तुम !!

Shekhar Kumawat said...

shandar rachna

badhai is ke liye

नरेश सोनी said...

जलजला जी का बिलकुल ठीक कहना है।
ब्लागजगत को एक गुलजार मिल गया है।

सुंदर अभिव्यक्ति।