मैं कल जिसके हाथ में फ़ूल दे के आया था,
आज उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है !!!
.....इस शेर को चरितार्थ होते देख रहा हूं ..... हुआ ये कि ललित शर्मा जी द्वारा अपने ब्लाग - "चिट्ठाकार चर्चा" में दिनांक - २५ फ़रवरी २०१० को "डा.रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' " की चर्चा उनके मान-सम्मान को देखते हुये की थी ....ठीक इसके विपरीत "डा.रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' " द्वारा ललित शर्मा जी के ब्लागिंग से अलविदा कहने पर ...... भावभीनी विदाई देते हुये उनके फ़ोटो पर हार-माला पहना कर की थी ......... शायर ने, क्या बुरा लिखा है -आज उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है !!!
मैं कल जिसके हाथ में फ़ूल दे के आया था,
आज उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है !!!
.... भईये ये कलयुग है .... यहां सब कुछ संभव है ... अगर भला कुछ है तो - "नेकी कर दरिया में डाल" !!!!
आज उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है !!!
19 comments:
बहुत सही कहा आपने, बशर्ते लड़ने झगड़ने व मसालेदार समाचारों को छोड़ सार्थक लेखन हो।
और डाक्टर साहब कैसे हैं ? हम तो भाई खुश हो गये आपकी चार चार टिप्पणी पाकर।
बहुत बहुत धन्यवाद!
aaz fir dekhiye
vivad me to nahi padunga par sher bahut achcha hai...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
भईये ये कलयुग है .... यहां सब कुछ संभव है ..
bilkul sahi kahan yaha sab sambhav hai..
अब वो मामला खत्म करिये भाई..
श्याम कोरी भाई,
दो तीन दिन पहले आपने ही मुझसे कहा था कि हमें शास्त्री जी की उम्र का ध्यान रखना है लेकिन अब आप ही हो कि... खैर न जाने क्यों मुझे लगने लगा है कि हमें इस विवाद को एक दुखद स्वप्न की तरह भूल जाना चाहिए। आज शास्त्री जी ने मेरे ब्लाग पर पहुंचकर एक टिप्पणी की है। मुझे लगता है कि वे बातचीत के पक्षधर है। हमें भी बातचीत करनी चाहिए। और फिर किसी से हमारा क्या बैर....( यही बात कल मुझे पाबला जी भी समझा रहे थे)जिन्दगी बहुत छोटी नहीं तो बहुत बड़ी भी नहीं है भाई मेरे। क्या हम लोग उड़न तश्तरी जी की बात से सहमत नहीं हो सकते।
श्याम जी.अब इस अध्याय की समाप्ति कर दी जाय...और भी बहुत काम है...
श्याम जी ,
मुझे लगता है कि ऐसी बातों और ऐसे प्रकरणों को समय बीतने के साथ उन पर धूल की पर्त जमने देनी चाहिए । अब आगे के सच का इंतज़ार रहेगा , मगर विषय अलग होगा इसकी अपेक्षा है
@समीर जी
@कमलेश जी
@राजकुमार भाई
... बात दर-असल ये है कि कल एक ऎसा ही वाक्या घट गया ....मुझे ये शेर याद आ गया ... मन कुछ लिखने को विचलित होने लगा क्या लिखूं सोचते-सोचते ....शेर पर ही लिख दिया ... वह प्रकरण लगभग समाप्त ही हो गया है ...यह पोस्ट विवाद पर नहीं वरन "शेर" पर आधारित है !!
दुआ करें उस पत्थर की तलाश कभी पूरी ना हो
उदय जी आपने स्पष्टीकरण टिप्पणी भी दे दी, अब यदि कोई विवाद रहा भी हो तो उसका अंत हो गया. व्यक्तिगत तौर पर मैं कहूं तो हमें मनुष्य का नहीं उसके विचारों का विरोध करना चाहिए.
जय भारत, जय छत्तीसगढ़.
वैसे तो सब कुछ संभव है पर जैसा सबने कहा है कि इस बात को यहीं पर ख़त्म कर दिया जाए तो बेहतर होगा!
प्रिय सम्माननीय साथियों
जिस विवाद पर विगत दिनों हो-हल्ला मचा रहा ... वह विवाद लगभग समाप्त-सा हो गया है लेकिन इस विवाद से ललित भाई कितने आहत हुये यह किसी ने जानने का कोई प्रयास नहीं किया ....
...सब यही सांत्वना/राय देते रहे कि इस विवाद को समाप्त किया जाये, शायद मेरा भी यही अभिमत रहा ....
...लेकिन विवाद के जन्मदाता के चेहरे पे कोई सिकन का भाव नजर नहीं आया, और तो और उन महाशय ने पुन: पूरे "छत्तीसगढ के ब्लागरों" पर निशाना साध दिया ...
...क्या हम लोगों ने उन महाशय को कभी समझाने का प्रयास किया, शायद किया भी हो, पर उसके चेहरे पर ....
मेरा मानना है कि उन महाशय के मनोभाव पोस्ट लगाते समय दुर्भावनापूर्ण नहीं रहे होंगे, शायद अंजाने में ही ऎसा हुआ होगा ...
...इस घटनाक्रम का सुखद अंत हो गया होता यदि उन महाशय ने "खेद" व्यक्त कर दिया होता... सिर्फ़ "खेद" ही तो व्यक्त करना था कोई क्षमा मांगने...!!!!
आपका कहना सही है, लेकिन फिर भी इस विवाद को ख़त्म कर देना चाहिए..शुभकामनाएं ....
श्याम जी, मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि हमें छत्तीसगढ़ की मर्यादा को बनाये रखना है। बड़ों की गलती को भूल जाएँ तो यह महानता का ही कार्य होगा।
श्याम कोरी "उदय" जी ईश्वर जानता है कि इस पोस्ट को लगाने के पीछे मरी कोई दुर्भावना नही थी!
मुझे नही पता था कि आप इसको इतना तूल देंगे!
अब तो मैंने वो सब पोस्ट हटा दीं है!
आप सब ही तो मेरी ऊर्जा हैं!
सादर सद्भावी!
यदि कहीं जाने-अनजाने में कोई भूल हुई हो तो उसके लिए तो एक ही शब्द है "क्षमा"
भाई हाथ मिलाइये और साथ हो लीजिये ।
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